अभी अभी ......


Friday, January 29, 2010

अंध विश्वास और हम

अंध विश्वास और हम

आज के वैज्ञानिक युग में भी लोग टोना-टोटके, तंत्र-मंत्र और अंधविश्वास से जकड़े हुए हैं

ऐसा कोई भी नहीं है जो किसी बुरी नज़र की बात से ना ड़रे क्या छोटा और क्या बड़ा...

अंध-विश्वास की इस दौड़ में एक और नाम शामिल हो गया है....पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरदारी का भ्रष्ट्राचार के कई मामलों से घिरे जरदारी एक बार फिर अंधविश्वास के चलते मुसीबत में घिरते नज़र आ रहे हैं...राष्ट्रपति बनने के बाद से जरदारी ने खुद को बुरी नज़र से बचाने के लिए 500से भी ज्यादा काले बकरों की बलि दे दी है....जरदारी रोज़ सुबह एक काले बकरे की बलि देते है ताकि वे किसी भी तरह की बुरी नज़र और जादू से बच सके..इतना ही नहीं इस अंधविश्वास के चलते जरदारी सिर्फ ऊंठ और बकरी का ही दूध पीते हैं।...ऐसा नहीं है कि इस अंधविश्वास की चपेट में सिर्फ जरदारी ही शामिल हों पूरी दुनिया में ऐसे कई राजनेता और विश्व प्रसिद्ध हस्तियां हैं जिन्होंने खुद को इस तरह के तमाम अंधविश्वासों में खुद को लपेट रखा है...इन हस्तियों के बारे में जानने से पहले एक नज़र ड़ालते हैं कौन से ऐसे टोटके हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को दहशत की चपेट में ड़ाल रखा है...
बिल्ली के रोने की आवाज- परेशानी आने की सूचना मिलना।
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काम पर जाते समय छींकना- काम न बनना।
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पूजा करते समय दीपक बुझना- अपशगुन होना।
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खाने में बाल आना- किसी परेशानी में आना।
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रोटी का बार-बार मुड़ना- किसी अपने का याद करना।
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छत पर कौवे का बोलना- मेहमान के आने की सूचना।

और भी ना कितने तरह के टोटके हैं जिनसे लोग डरते हैं...। पूरी दुनिया में एक नज़र डाले तो तमाम बड़े नाम किसी ना किसी शकुन और अपशकुन के चलते अंध विश्वास की चपेट में रहेहैं...

बात चाहे जरदारी की हो या फिर ओबामा की कहीं ना कहीं हर कोई इन अंध विश्वासों की चपेट में है,एक नज़र इनके अंध विश्वास पर......

· जॉन मेक -इन भी इसी अंधविश्वासों की दौड़ में शामिल हैं .वे हमेशा अपने साथ एक लकी सिक्का ,निकल (धातु ),quarter ,कम्पस ,और एक पंख साथ में रखते हैं .

· वही अमेरिका के बरैक ओबामा वोटिंग के पहले बास्केटबाल खेलने की परंपरा निभाते हैं .

· Franklin Roosevelt को १३ नम्बरों में अन्धविश्वास से इतने गहरे प्रभावित रहे हैं की महीने की १३ तारीख को कही सफ़र नहीं करते थे .वे अपनी यात्रा १२ या १४ के आंकडे में करते थे,इसके साथ उन्हें यह भी भ्रम था की एक ही माचिस से तीन सिगरट नहीं जलना चाहिये .

· Harry S .Truman जो united states के ३३ वे राष्ट्रपति रह चुके हैं.वे अपने घर के बाहर घोड़े की नाल टांगते हैं.ऐसा माना जाता है कि घोड़े की नाल घर के मुख्य दरवाजे पर टांगने से घर में समर्धि और सुख-शांति बनी रहती हैं. जब वे राष्ट्रपति बने तो अपने राष्ट्रपति भवन के मुख्य द्वार पर भी घोड़े की नाल टांग रखी थी .

· Michelle Obama की पत्नी परम्परिक choclate cookies बनाने की प्रतिस्पर्धा में हार गयी थी ,तो सबने उनकी हार निश्चित कर ली थी .पर वे इलेक्शन जीत गए थे.

· Bill Clinton ने अंतिम इलेक्शन के दौरान अपनी रेसिपी जमा कर दी थी,वही उनकी पत्नी पीछे रह गयी थी .ऐसा माना गया कि इसकी वजह से बिल क्लिंटन इलेक्शन जीत गए थे.

सिर्फ विदशों में ही नहीं भारत में तो राज नेताओं और बड़ी हस्तियों पर अंध विश्वास की किताब लिखी जा सकती है.।कुछ बड़े नाम हैं.....

वाइ एस राजशेखर रेड्डी जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो अंकज्योतिष के अनुसार ३ जून तक अपने चम्बर में नहीं गए थे .क्योंकि हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से उस दिनननिर्जला एकादशी थी ,जो अशुभ मानी जाती हैं.उन्होंने पूजा पाठ के बाद ही ७;१५ a .m पर ही अपनी कुर्सी पर बैठे थे.उन्होंने भगवन बैकंटेश्वर गिरजाघर और मुसलिम धर्म के अनुसार पूजा अर्चना भी की थी.इसके बाद अपने अच्छे राजनीती कार्यकाल के लिए हनुमान मंदिर में पूजा के बाद ही कार्य शुरु किये थे .उसी दिन ८ मंत्रियो ने अंकज्योतिष के अनुसार ठीक ९ बजे से पहले अपने चम्बर में गए थे।ज्योतिष्य शास्त्री भैयु महाराज के शिष्य विलासराव देशमुख ,शिवराज पाटिल ,जयंत राव पाटिल,औऱ अशोक च्वहाण इन्हीं के कहे अनुसार कार्य रूपरेखा बनाते हैं.....तो वहीं बाल ठाकरे को धार्मिक अनुष्ठान खासकर यज्ञ एवं आहुतियों में विश्वास है उनका मानना है कि इससे ही राजनीति में एक मुकाम तय किया जा सकता है। देवी गौड़ा भी अंकज्योतिष्ती में विश्वाश करतेहैं। मुसीबतों से बचने के लिए देवीगोड़ा एक जुदाई चैन भी पहनते थे। उमा रेड़्ड़ी तो अपने आफिस में जाने से पहले नारियल तोड़ना नहीं भूलती थी ...

इतना ही नहीं इस अंध विश्वास की दौड में हमारे फिल्मी सितारे भी पीछे नहीं है अगर हम फिल्मी हस्तियों की बात करें तो बिग बी ने अभिषेक की शादी के पहले ऐश्वराया की कुंड़ली में मांगलिक दोष को दूर करने के लिए वाराणसी मे 4 घंटे की पूजीकी थी,...।- एकता कपूर अपने हर सीरियल का नाम क से शुरू करती है। काला टीका लगा कर रखती हैं साथ ही अपने आफिस के बाहर एक मरा हुआ चूहा लटकाकर रखा है । भारतीय क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर उल्टा पैड पहले पहनते हैं। स्टीव वॉ अपनी जेब में हमेशा लाल रूमाल रखते थे।अपनी हर फिल्म के मुहुर्त से पहले हेमा मालिनी इडली-चटनी खाती थी।टोटकों का चलन पुराना और अंधविश्वास से जुडा है। मगर हैरत की बात तो यह भी है कि अनेक विश्व विख्यात लेखक भी इन पर यकीन करते थे और लेखन के समय इनका नियमित रूप से पालन करते थे, जो बाद में उनकी आदत में शुमार भी हो गया। महान फ्रांसीसी लेखक एलेक्जेंडर डयूमा का विचार था कि सभी प्रकार की रचनाएं एक ही रंग के कागज पर नहीं लिखनी चाहिए। उनके मुताबिक उपन्यास आसमानी रंग के कागज़ पर और अन्य रचनाएं गुलाबी रंग के कागज़ पर लिखनी चाहिए।मगर प्रख्यात हिन्दी लेखक रांगेय राघव को फुलस्केप आकार का कागज भी बेहद छोटा लगता था। इसी तरह चार्ल्स आउडिलायर (1821-1867) नामक फ्रेंच कवि को हरा रंग लिखने की प्रेरणा देता था। इसलिए उन्होंने अपने बाल ही हरे रंग में रंग डाले थे। प्रख्यात समीक्षक डॉ.सैम्युअल जॉन्सन अपनी पालतू बिल्ली लिली को मेज पर बिठाकर ही लिख पाते थे। गार्डन सेल्फिज शनिवार को दोपहर में और शेष दिनों में रात के समय लिखते थे। शनिवार को दोपहर में वह खुद को विशेष उत्साहित महसूस करते थे।विख्यात अंग्रेजी उपन्यासकार और समीक्षक मैक्स पैंबर सिर्फ सुबह दस बजे तक ही लिखते थे। इसलिए एक उपन्यास को पूरा करने में उन्हें बहुत ज्यादा समय लगता था। इटली के लेखक जियो ऑक्चिनी रौसिनी (1791-1868) लिखने का मूड बनाने के लिए हमेशा नकली बालों की तीन विग पहना करते थे। प्रसिध्द जर्मन कवि फेडरिक वान शिल्लर (1759-1805) की आदत भी कम अजीब नहीं थी। वे अपने पैरों को बर्फ के पानी में डुबोकर ही कविताएं लिख सकते थे। अगर वे ऐसा नहीं करते थे तो उन्हें कविता का एक भी शब्द नहीं सूझता था।फ्रांसीसी भाषा के सुप्रसिध्द साहित्यकार तथा रमणी रसिक चिरकुमार मोंपासा मूड फ्रैश होने पर ही लिखते थे। अपने को तरोताजा करने के लिए वे नाव चलाते, मछलियां पकड़ते या फिर मित्रों के साथ हंसी-ठिठौली करते थे। राइज एंड फास्स ऑफ रोमन एंपायर के लेखक नाटककार गिब्सन को लिखने के लिए पहले एकाएक संजीदा होना पडता था। महान फ्रांसीसी लेखक बाल्लाजाक की आदत भी विचित्र थी। वह दिन में फैशन के कपड़े पहनते और रात को लिखते समय पादरियों जैसा लिबास पहनते थे।सुप्रसिध्द लेखक बरटेड रसेल का अपनी लेखन प्रक्रिया के बारे में कहना था कि उनका लेखन मौसम पर ही आधारित होता है। खुशगवार मौसम में वे रात-दिन लिखते थे और गर्मी वाले उमस भरे दिन में वे लिखने से कतराते थे। एईडब्ल्यू मेसन भी मूडी स्वभाव के थे। जब उनका मन करता तभी लिखने बैठते। वे रात या दिन मूड होने पर कभी भी लिख सकते थे।गोल्जस्मिथ को लिखने से पहले सैर करने का भी शौक था। अपने उपन्यास, कविताएं और नाटक रचने के दौरान उन्होंने दूर-दराज के इलाकों की यात्रा की। गिलबर्टफे्रंको सुबह नौ बजे से दोपहर दो बजे तक लिखा करते थे। दोपहर के भोजन के बाद एक घंटे लिखते थे और फिर वह शाम को भी दो घंटे तक लिखते थे। रात को लिखना उन्हें जरा भी पसंद नहीं था। सर ऑर्थर पिनेरी को केवल रात में ही लिखना पसंद था। दिन में अगर वे लिखने बैठते तो उन्हें कुछ सूझता ही नहीं था। इसी तरह की आदत लुई पार्कर को भी थी। वे दिनभर सोते और रात को जागकर लिखते थे। अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन को औंधे मुंह लेटकर लिखने की अजीब आदत थी।अर्नेस्ट हेमिंगवे फ्रांस के क्रांतिकारी लेखक विक्टर ह्यूमो और पंजाबी के उपन्यासकार नानक सिंह को खडे होकर लिखने की आदत थी। विस्मयली लैक्स सुबह चार बजे से दिन के 11 बजे तक और शाम को साढे सात बजे तक तथा रात को फिर 11 बजे तक लिखते थे। उनका बाकी का समय सोने और चाय पीने में बीतता था। प्रख्यात रूसी लेखक फीडिन ने जब उपन्यास असाधारण ग्रीष्म ऋतु लिखा तब वह समुद्र किनारे रह रहे थे। उनका मानना था कि समुद्र की लहरों की गूंज की आवाज उन्हें निरंतर लिखने के लिए प्रेरित करती थी।हैरसवासिल सुबह नौ बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम को पांच बजे से सात बजे तक लिखते थे। डेलिस ब्रेडकी केवल तीन घंटे ही लिखते थे और वह भी सुबह 11 बजे से दोपहर दो बजे तक। सर ऑर्थर कान डायल केवल सुकून महसूस करने पर ही लिखते थे। अगर किसी बात से उनका मन जरा भी विचलित होता तो वे एक पंक्ति भी नहीं लिख पाते थे। जर्मनी के कार्लबेन को लिखने की प्रेरणा संगीत से मिलती थी। उन्होंने अपनी पसंद के गाने रिकॉर्ड कर रखे थे। पहले वे टेप चलाते और फिर लिखने बैठते।

केशव आचार्य

Monday, January 25, 2010

मत आना लौट कर

मत आना लौट कर

मत आना इस धरा पर
तुम लौट कर ,
इस विश्वास के साथ कि
तुम्हारे तीनों साथी अब भी
बैठे होगें,
कान आंख और मुंह बंद कर
बुरा ना सुनने,देखने और कहने के लिए,
मत आना तुम इस धरा पर लौट कर
इस आशा के साथ कि
तुम्हारी लाठी अब भी तुम्हारे रास्ते का हमसफ़र होगी
अब तुम्हारी लाठी राहगीरों को रास्ता दिखाने के काम नहीं आती
तुम्हारी लाठी है,
सत्ता के नशे में चूर,घंमड़ी और स्वार्थी मदमस्तों का सहारा,
मत आना इस धरा पर
तुम लौट कर ,
क्योंकि यहां बदल चुके हैं तुम्हारें जीने के मायने और
बदल चुकी है तुम्हारे आस्था के मायने
केशव आचार्य

Sunday, January 24, 2010

गणतंत्र दिवस

मरते मिटते रहते कई दंगों में ,मरना हो तो वतन पे मरो
वतन की मौत बड़ी रंगीन होती है...
पैरों से ना रौंदों माथे से लगा लो देश की मिट्टी तो सिंदूर होती है...
आज हम गणतंत्र दिवस की 61वी वर्षगांठ मना रहे हैं...यूं तो हमें आजादी 15 अगस्त को ही मिल गई थी लेकिन 26 जनवरी 1950 तक हम भारतीयों के शोषण युक्त कलम से लिखे संविधान के अनुसार ही चलते रहे।किसी भी देश के संविधान का ना होना उस देश की रीढ़ की हड़्ड़ी ना होने के समान है,.यानी कि हमें असली आज़ादी 26 जनवरी को मिली जब हमारे देश के नेताओं ने वर्षों से भारतीयों के शोषण युक्त कलम से लिखी इबारत को तोड़कर अपना संविधान लागू किया। लेकिन अंधानुकरण के इस दौर में गणतंत्र सिर्फ ‘धन’ और ‘गन’ का तंत्र बन कर रह गया है..जिस गणतंत्र पर सारे भारतीयों को गर्व है उसी की धज्जियां सरे आम उठाई जा रही है। और इस घिनौने काम को अंज़ाम दे रहे हैं हमारे ही बीच के कुछ तथाकथित नेता जिनके लिए इस संविधान का मतलब सिर्फ कागजों पर लिखी चंद lines से ज्यादा और कुछ नहीं है। हमारा गणतंत्र हमारे लिए उस धुरी की तरह से जिसके चारों और देश का पहिया चक्कर लगाता है। गणतंत्र का मतलब है ‘ जनता का तंत्र जनता के लिए’ अर्थात् इस संविधान में सर्वोपरि है जनतंत्र पर क्या मौज़ूदा हालातों के बाद कहा जा सकता है कि इस जनतंत्र(गणतंत्र) में जनता का सर्वोपरि स्थान आज भी वैसा ही मौज़ूद है जिसकी परिकल्पना हमारे राष्ट्र भक्त शहीदों और नेताओं ने की थी। तमाम प्रयासों के बाद आज भी देश की जनता के पास अगर कुछ है तो सिर्फ एक मूक दर्शक की सीमा,बुरा मत देखों बुरा मत सुनों ,बुरा मत कहो की तर्ज पर आज हमारे पास है बुरा देखने की बुरा सुनने की लेकिन उस बुराई का प्रतिवाद नही कहने(करने) की सीमा। जिस विदेशी भाषा,विदेशी विचार,और विदेशी तंत्र के लिए आवाजें उठाई गई उन आदर्शों के मायने बैमानी साबित हो रहे है।आज इस देश के गणतंत्र को खुली चुनौती दी रही है...पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवादियों को भेज कर हमारे देश की नींवों को खोखला करता जा रहा है, नक्सलवाद लगातार हमारी छाती पर अपने उपद्रवकी कीलें ठोकता जा रहा है...उसके बाद भी हमसे सिवाय ढ़िढ़ौरा पीटने के और कुछ नहीं हो पा रहा है...हमारे पास सिवाय दूसरों के समाने हाथ फैलाकर चिल्लाने के आलावा कोई रास्ता ही नहीं होता...
आखिस क्यों हम ये भूल रहे हैं कि शांति दूत गांधी की इस धरती पर आज़ाद और भगतसिंह ने भी जन्म लिया है....आइए इस गणतंत्र दिवस की पावन बेला पर एक बार फिर से इस देश को बापू के सपनों का भारत बनाने की कोशिश शुरू करें। आइए जातिवाद को छोडकर एक बार फिर से कमजोर पड़ चुकी देश की नींव को मजबूत करें।कम से कम यह एक सच्ची श्रृद्धांजलि तो होगी उन अमर शहीदों की....
तुम हो हिन्दू तो मुझे मुसलमां जान लो
तुम हो गीता तो मुझे कुरान मान लो
कब तक रहेगें अलग अलग और सहेगें ज़ुदा ज़ुदा
मैं तुम्हें पूंजू ,तुम मुझे अज़ान दो
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
केशव आचार्य

Monday, January 4, 2010

प्रथम भारतीय नवजागरणकाल में वेद धर्म और विचार धाराएं
प्राचीन भारतीय सभ्यता औऱ संस्कृतियों के लिकास का इतिहास,धर्मों के विकास औऱ उनके स्वरूपों के प्रत्यक्ष में आने की एक गहरी परंपरा का ही इतिहास है. प्रत्येक युग या आने वाले समय में धार्मिक बदलाव आये जिनका समाज पर भी गहरा प्रभाव पड़ता गया.प्रत्येक नये धर्म के साथ पुराने धर्मों की छाप वैसे ही पड़ती गई जैसे नये विकसित संस्कृति पर पिछली संस्कृति की छाप पड़ती है. कभी कभी तो इन नये धर्मों का आभास तक नहीं होता .औऱ कभी धर्म के विभिन्न रूपों में जमकर तथा खुला संघर्ष होता है.भारतवर्ष भी इस खुले धार्मिक संघर्ष से अछूता नहीं रहा है.3500 वर्षों पहले तक भारत भी ऐसे ही खुले संघर्ष औऱ अंध विश्वासों में ड़ूबा रहा है.ऐसी व्यवस्था के विरूद्ध होने वाले परिवर्तन की ही प्रथम भारतीय पुर्नजागरण कीसंज्ञा प्रदान कीहालांकि इस काल से पूर्व भारत वैदिक युग और पुरोहित सभ्यता के काल से भी गुजरा.वैदिक सभ्यता के उदय से पहले भी भारत में एक शक्तिशाली व्यवस्था एवं सभ्यता विद्यमान थी जो इस युग के लिए भी आदर्श है.इस युग के धर्मों मेंना कोई राजा था नाकोई प्रजा, ना कोई दास ना कोई स्वामी. लेकिन समय के साथ ही संपत्ति पर अधिकार के व्यक्तिगत स्वरूप ने एवं आनार्यों के आगमन के साथ ही यह उज्जवल सभ्यता धूमिल होती गई ,एवं 4500 वर्ष पहले महाभारत काल के साथ ही यह सभ्यता भी समाप्त हो गई. असुर संस्कृति औऱ सामाजिक पद्धति ने इसे मिटाकर इसकी जगह धर्म और अनुष्ठान के पाखंड़ की स्थापना आज से लगभग4500-5000 वर्ष पहले “पुरोहित युग”के रूप में कर दी जिसे आज हम “ब्राह्मण युग” के रूप में जानते हैं...जिसका समय2000 या इससे कुछ अधिकसमय तक रहा.यह भारतीय समाज का सबसे उत्पीड़क अंधकार युग था....लगभग 1500 साल चले इस ब्राह्मण युग मे असहनीय पीड़ा,चारों ओर अंधकार,हाहाकार ,यज्ञों की बलिवेदी से निकलते दुर्गंध युक्त ताप से चारों तरफ व्याकुलता छाई थी... लेकिन जिस तरह बुरे सपनें काली रातों काली रातों के बीत जाने पर समाप्त हो जाते हैं केवल उनकी स्मृतियां शेष रह जाती है...वैसे ही यह युग भी बीत गया..औऱ इस समय कुछ ऐसी परिस्थियां बनी जिन्होंने नवजागरणकाल के लिए एक मंच तैयार किया...हालांकि इस मुक्ति संघर्ष में भारत को 1500 साल लग गये..यही हमारा प्रथम नवजागरण काल था...कितने ही कठिन संघर्षों के बाद हमने वो काली और भयावह रात पार की...लेकिन यह गर्वयोग्य बात है कि इन 1500 शताब्दीयों तक भारतीय समाज जीवत रहा और अगली 15 शताब्दियों तक ही अपने पुर्नजन्म के लिए संघर्ष करते हुए समस्त विश्व का मार्गदर्शन करता रहा...इस प्रथम भारतीय नवजागरण काल में हमारे वेदों धर्मों और विचारधाराओं ने अतुलनीय योगदान दिया
उपनिषद काल
जब कोई अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन अपना स्वरूप विस्मृत कर विकृत स्वरूप में प्रकट होती है तो सामाजिक विकास के मार्ग अवरूध होने लगते हैं....पुरोहित या ब्राह्णणयुग एक ऐसी ही विकृत सामाजिक व्यवस्था थी...यद्अपि यह 15 सौ वर्षों तक चला पर अंत में इसे जाना पड़ा...इस युग के विरूद्ध कार्य करने वाली परिस्थियां आज से 35 शताब्दियां पहले ही तैयार होने लगी थी....इस कार्य को करने वाले लोग आड़बंर मुक्त थे...इनका जीवन आकर्षक सीधा सादा ,सरल तेजमय तो था ही उनकी विचारशैली उत्तेजक एवं मस्तिष्क के द्वार खोलने वाली भी थी..ये लोग भोग विलास औऱ राजमहलों से दूर तपोंवनों में बैठ कर सर्वसाधारण से बात करते थे, सबसे पहले इन्होनें ही गौ को माता कहा औऱ अवधनीय माना....इन्होनें मास भक्षण बंद कराकर शाकाहार को प्रोत्साहन दिया..3500 वर्षों तक अंधकार में ड़ूबे लोगों को सही रास्ता दिखाने वाले ये लोग थे..उपनिषदों के महर्षि. ये जन विचारक लोग ममत्व जाति की पीड़ाओं को स्वंय झेल कर उनके लिए नये मार्ग प्रशस्त करते थे....अपने संबंध मे इन्होंने घोषणा की थी .....
न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग नापुन भर्वम्
कामये दुखतप्तानां प्राणि नामर्तिनशम्
इन महापुरूषों के विचार उपनिषदों में अंकितहैं। इन महामानवों ने ये ग्रंथ जनता के समीप बैठकर,उनके आवेगों को ध्यान में रखकर लिखा इसलिए अर्थात् “ समीप बैठकर लिखी” कहा जाता है...
उपनिषद् के ऋर्षि केवल ब्राह्णण ही नहीं थे बल्कि अब्राह्मण भी थे, अल्पब्रक इनमें प्रमुख हैं। उपनिषदों केऋर्षियों ने पुरोहितवाद के आड़म्बर पर गहरा प्रहार करते हुए शताब्दियों से दबी ,गूगीं, बहरी जनता के लिए धर्म के वैकल्पिक रूप प्रस्तुत कियें औऱ प्रगति के द्वार खोल दिये। इन्होंने शारीरिक श्रेष्ठता पर प्रहार करते हुए ज्ञान को श्रेष्ठता पर दिया। क्योंकि ज्ञान पर किसी जाति विशेष का अधिकार तो होता नहीं है। इतना ही नहीं ज्ञान की श्रेष्ठता को सिद्ध करते हुए इन्होंने स्त्री जाति को अनैतिक सामाजिक बंधनों से छुटकारा दिला दिया,इससे पहले पुरोहित युग तक नारी का स्वरूप दासी का था। मार्गों और मैत्रेयी इस काल की प्रमुख उपलब्धि थी जिनके ब्रह्म ज्ञान को हम नकार नहीं सकते हैं। इस युग तक चली आ रही कुंठित मानव मस्तिष्क में नई चेतना का संचार किया। उपनिषदकारों ने मानव जीवन के प्रत्येक मूल प्रश्न पर मौलिकता से विचार मंथन किया....यह युग लगभग हजार सालों तक चला जिसमें याज्ञवल्लव,उद्दालय,गार्गी,यैत्रेमी,कणाद,गौतम,कपिल,बादरायण आदि नास्तिक ऋर्षियों ने समाज को आड़म्बर से निज़ात दिलाई और नवजागरण काल के लिए आधार स्थल तैयार किया।
गौतम बुद्ध का जनान्दोलन
उपनिष्दों का ज्ञान मानवों की मासिक संकीर्णता को दूर कर रहा था , परंतु अति सीमित क्षेत्र तक ही अर्थात् यह केवल शिक्षित वर्ग ही था। लेकिन इस कार्य को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया एक ऐतिहासिक पुरूष गौतम बुद्ध ने। इन्होंने मानस पटल पर संकीर्णता मिटाने को कार्य के साथ ही समस्त विश्व में ज्ञान की ज्योत जलाई। इन्होनें ज्ञान की इस, लहर से जनमानस को उस समय भिगोया जब देश दो विभिन्न संस्कृतियों औऱ व्यवस्थाओं के संक्रमण काल से गुजर रहा था। एक तरफ जहां उपनिषदकारों का प्रभाव क्षीण हो रहा था औऱ दूसरी तरफ भारतीय जनता अंधकार में ड़ूबी थी,गौतम बुद्ध ने ज्ञान को संयत और स्पष्ट रूप से प्रकट किया , इनके विचारों ने आने वाले 500 सालों तक जनमानस को प्रभावित करते रहे।
ईसा पूर्व 500 वर्ष पहले गौतम बुद्ध शाक्य गणतंत्र के राजा शुद्धोधन के यहां उत्पन्न हुए।बचपन से ही किसी दुखित प्राणी को देखकर दुखी हो जाते औऱ उस दुख से खुद को ग्रस्त अनुभव करते । किसी दुख के बचाव का मध्यम मार्ग निकालने की राह पर सिद्धार्थ से बोधिसत्व और गौतम बुद्ध बन गये।
गौतम बुद्ध किसी तपोवन में सन्सासी बनकर बल्कि जीवन भर घूम घूमकर लोगों के दुखों का निवारण करते रहे। “ चरैवेति चरैवेति”का नारा देकर अपने समस्त अनुयायियों को संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते रहने की प्रेरणा दी। इन्होंने अंहिसा और शांति को मानवता जीनव की सबसे बड़ी पूंजी माना। गौतम बुद्ध ने उपनिषदकारों औऱ अपने विचारों में कोई अंतर नहीं मानते थे । परंतु उपनिषदकारों के विचारों और ज्ञान में पुरोहित वर्ग और उनके स्वार्थों पर गहरी चोट नहीं की। जबकि बुद्ध केविचारों ने जनमानस के हृदय स्थल पर जाकर नई आशाओं का संचार किया। इनके विचारों को एक स्पष्ट जनाधार मिला।इनके उद्देशों के कारण ही पशु हिंसा समाप्तप्राय: हो गई और खेती के रूप में नई व्यवस्था का प्रचलन हुआ इनके द्वारा दिये गये उपदेशों के कारण ही अगले 4-5 सौ सालों में काबिला और दास प्रथा काअंत हो गया। पूरे भारतीय इतिहास में गौतम बुद्ध एकमात्र ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति थे जिनके विचारों ने सदियों तक भारतीय समाज के साथ साथ संपूर्ण विश्व को सघन रूप तक प्रभावित किया।
भारतीय नवजागरण में उपनिषदों के पश्चात् सबसे महत्तवपूर्ण स्थान बौद्धों के जनांदोलन का रहा। उन्होनें हजारों वर्षों से चली आ रही रूढ़ियों और अंधविश्वासों में ड़ूबी भारतीय जनता में नई स्फूर्ति भरी उनमें आत्मबोध जाग्रत कर नई परिस्थियों का सामना करने के योग्य बनाया
जैन धर्म का योगदान
गौतम बुद्ध की तरह ही राज परिवार में जन्में महावीर स्वामी भी उन्ही की तरह कष्टों से मुक्ति दिलाने को ललायित थे । इन्होनें बड़ी सत्य निष्ठा और प्रबलता के साथ यज्ञों में हिंसा का प्रतिरोध किया। लेकिन यह बौद्ध धर्म की तरह एक व्यापक जनादोंलन नहीं बन सका और प्रारंभ से ही एक वर्ग विशेष तक सीमित रहा। फिर भी दार्शनिकता के क्षेत्र में उनकी प्रगतिशील भूमिका का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता । उसका स्यादवाद दर्शन पुरानी निष्ठाओं और अंधविश्वासों पर कड़ा प्रहार करता है और सोच के विपरीत आचरण को भी धर्म मानता है।शताब्दियों तक जिन यज्ञानुष्ठानों को धर्म का एक हिस्सा मान लिया गया था , उसके विरूद्ध जैन धर्म ने संघर्ष कर सामाजिक चेतना को जाग्रत किया।
चार्वाक की भूमिका
भारत के प्रथम पुर्नजागरण काल में चार्वाक की भी महत्तवपूर्ण भूमिका थी। उन्होने वेद ऋर्षियों के विचारों का सर्मथन करते हुए आड़ंबर पूर्ण कर्म कांड़ों यज्ञानुष्ठानों की कड़ी आलोचना करते हुए इसके समांतर ज्ञान की श्रेष्ठता स्थापित की। इन्होनें पशु बलि का घोर विरोध किया एक ओर उपनिषदकारों , बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म ने उपनिषत्कारों की शैली में ही वेदों की मान्यता का आदर किया वहीं दूसरी ओर चार्वाक ने दार्शनिक प्रतिक्रिया बौद्धिक संघर्ष चलाया। इनके दर्शन की पुराणों में व्यापक चर्चा की है.
पुराणों के अनुसार महाभारत की समाप्ति के बाद जब कलियुग का प्रवेश हुआ तभी चार्वाक का भी प्रवेश हुआ। इन्होनें वेदों की निंदा औरवैदिक धर्म का खंड़न करते हुए ईश्वरवाद ,कर्मकांड़ , आस्तिकवाद तथा आड़म्बरों का घोर विरोध किया चार्वाक ने सृष्टि से लेकर लौलिक दिनचर्या तक सभी कर्मों पर गंभीरता से विचार किया है....।
विभिन्न दार्शनिक मान्याताएं और उनका योगदान
कई शताब्दियों तक भारतीय समाज ने अपने मस्तिष्क से काम लेना बंद कर दिया था एवं वेदो औऱ पुरोहित वर्ग के आदर्शों के रूप में दासता का अंधेरा अपने चारों और पाल लिया था , उसी समाज को विभिन्न बौद्धिक स्तरों के आधार पर छोड़कर स्वतंत्र चिंतन की शुरूआत की गई। इसी स्वतंत्र चिंतन की बदौलत स्वर्ग प्राप्ति और मोक्ष के लिए यज्ञों के माध्यमों से की जारही है हिंसा पर रोक लगाना संभव हो पाया.।
मक्खली या मस्करी पुत्र गोसाल कम्बली पकुदकचायन , निगण्ठनाथ आदि दार्शनिकों ने स्वर्ग ,मोक्ष ,पुर्नजन्म,अग्रिम जन्म,पुरोहित औऱ भी नाना प्रकार की कुरीतियों के लिए भारतीयों के मन में नवजागरण की लहर पैदा की ।इनका मानना था स्वर्ग और मोक्ष की चिंता मेंइस जीवन मेंइस जीवन को दुखों मेंड़ुवोकर रखना व्यर्थ है...। अजितकेश कंबली तो मानव जीवन की निकृष्ठतम वस्तु को भी रूचिकर सिद्ध करते हुए मानव केशों से बने कंबल पहना और ओढा करते थे।
इन सभी दार्शनिकों ने पुरोहितवाद के निविड़ अंधकार के विवरण-आन्दोलन को आगे बढ़ाया औऱ समाज के बौद्धिक ,सामाजिक, आर्थिक रूप से विकास की नई दिशा प्रदान की।
यह भारतीय नवजागरण का वह समय था जब जीनव के सारे पुरातततन समीकरण बदल गये थे....नई बौद्धिक औऱ सांस्कृतिक दशाएं उत्पन्न हो गई थी। इस समय के बाद लगभग 150 सालों से आ रही कुरीतियों का किला ध्वस्त हो गया , इसके विरूद्ध पूरे भारत वर्ष में हमारे दार्शनिक , चिन्तकों जन- आंदोलनकारियों ने नये भारतीय समाज के लिए आवश्यक परिस्थियां तैयार की । इसी नवजागरण के फलस्वरूप ही भारत ने एक नये राष्ट्र के रूप में जन्म लिया औऱ एक राजनैतिक इकाई के रूप में उभरा
फिलहाल इतना ही ......


केशव आचार्य

Saturday, January 2, 2010


छत्तीसगढ़म में चुनाव खत्म
लोकसभा चुनावों की मतगणना खत्म .....कांग्रेस को पूरे देश में अप्रत्याशित सफलता हाथ लगी.....उम्मीद से भी बढ़कर कांग्रेस ने पूरे देश में अपना झंड़ा लहराया......साथ ही मध्य प्रदेश में मिली सफलता पर तो कांग्रेस फूले नहीं समा रही है....ऐसे में एक छोटा सा प्रदेश छत्तीसगढ़ एक बार फिर आपसी राजनीति की भेंट चढ़ गया है....मुझे समझ में नहीं आता कि आखिर क्यों छत्तीसगढ़ में किसी तथाकथित नेता के चलते पार्टी के तमाम सिंद्धातों को ताक पर रख दिया जाता है......क्या दिल्ली के लिए 8 सालों बाद भी छत्तीसगढ़ नवीनतम् प्रयोग और अंनुसंधानों के लिए ही हैं.....,साढ़े 4 सालों तक प्रदेश में पार्टी का गठन नहीं होता और फिर आचनक कई नेता एक साथ कई पदों पर स्वयं को महिमा मंड़ित करते हुए पदाधिकारी बन बैठते है......विधानसभा में हुए निराशाजनक प्रदर्शन और आपसी कलह की भी किसी बड़े नेता को चिंता नहीं है.......मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ किसी मेड़िकल कालेज में स्ट्रेचर पर पड़ी हुई उस लाश कि तरह है....जिस पर तमाम छात्र नये- नये औजारों के साथ उसकी शारीरिक संरचना को जानने के लिए चीड़-फाड़ में लगे रहते है......
Posted by acharya at 11:30 PM 0 comments
Saturday, March 28, 2009

चौथा मोर्चा
आम चुनावों को लेकर विभिन्न गठबंधनों और दलों की जो तस्वीर अब उभर रही है उसमें किसी को बहुमत मिलना मुश्किल दिखाई दे रहा है। सवाल उठ रहा है कि क्या एक बार फिर देश त्रिशंकु संसद की ओर बढ़ रहा है।चुनाव की घोषणा के समय फायदे में दिखाई दे रही कांग्रेस में तीन सप्ताह की नाटकीय उठापटक के बाद अब वो धार नहीं बची दिखाई दे रही है। उसे आखिरी झटका गुरुवार को लगा है जब तमिलनाडु में पीएमके ने अन्नाद्रमुक का दामन थाम लिया। अब वह अपने पुराने सहयोगियों डीएमके और कांग्रेस के खिलाफ चुनाव वाले तमिलनाडु में अब राजनैतिक समीकरण बदल गए हैं।बीते दिनों के घटनाक्रम के बाद तीनों मोर्चे की ताकत लगभग बराबर दिखाई दे रही है। उनके बीच बराबर मुकाबले के लिए मैदान तैयार लग रहा है। कांग्रेस, भाजपा और वामदलों के तीन गठबंधनों के बीच अब मुलायम सिंह और लालू प्रसाद ने एकजुट होने की घोषणा कर एक तरह से चौथे मोर्चे की नींव रख दी है।यह कहने को तो छोटा है लेकिन यूपीए में कांग्रेस के नेतृत्व को चुनौती देने के लिहाज से यह अहम साबित हो सकता है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह ‘चौथा मोर्चा’ एक तरह से शरद पवार को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस पर दबाव बनाने का काम करेगा। इसमें कोई शक नहीं कि राजनैतिक परिदृश्य काफी उलझा हुआ है। स्पष्ट जनादेश नहीं मिलने पर सरकार का गठन जटिल और लंबी प्रक्रिया हो सकती है। लोकसभा के चुनाव राज्यों के नतीजों का ही जोड़ भाग बनते जा रहे हैं। ऐसे में एक और त्रिशंकु संसद की संभावना बन रही है। असली लड़ाई तो नतीजे आने के बादशुरू होगी। सभी पार्टियां इसके लिए तैयार हो रही हैं और बहुत संभव है कि इसमें न तो यूपीए बचे, न ही एनडीए और न ही तीसरा मोर्चा। हो सकता है कि कोई एकदम नई रचना सामने आए, नए नाम के साथ।
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4 प्रदेश पूरा देश
लोकसभा 2009 के लिए बिगुल बज चुका है...16 अप्रेल से पहले चरण की 124 सीटों के लिए मतदान होना है...इन लोकसभा सीटों मे से कुछ सीटों पर राष्ट्रीय पार्टीयों की हार-जीत से केन्द्र में सरकार के बनाने और बिगडाने तक का खेल होता है...लोकसभा के महासंग्राम में सबसे महत्तवपूर्ण राज्य माना जाता है उत्तरप्रदेश…संसदीय सीटों की संख्या के हिसाब से देश का सबसे बड़ा सूबा....आजादी के बाद से अब तक इसने देश को सात प्रधानमंत्री दिए....इसके खाते में संसद की 80 सीटें हैं... किसी पार्टी या गठबंधन के लिए यह राज्य हमेशा से निर्णायक रहा हैं...पिछले संसदीय चुनाव में समाजवादी पार्टी को 35 सीटें मिली थीं, बसपा को 19, भाजपा को 10 और कांग्रेस को 09 .... देश की दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां-कांग्रेस और भाजपा के लिए यह सूबा सिरदर्द बना हुआ है.......उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का पारंपरिक जनाधार खिसकने के साथ ही देश की सत्ता-राजनीति में गठबंधन के दौर की शुरआत हुई है... इस बार भी सत्ता के समीकरण और गठबंधन का स्वरूप तय करने में उत्तर प्रदेश की अस्सी सीटों की अहम भूमिका होने वाली है....यहां के प्रमुख सियासी किरदार हैं-बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव.... मायावती इस बार प्रधानमंत्री बनने का सपना सच करने में जुटी हुई हैं.... कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी के चुनाव क्षेत्र भी इसी सूबे में हैं...... राहुल पार्टी के खोए जनाधार को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं....उनके लिए भी यह चुनाव एक बड़ी अग्निपरीक्षा की तरह है। कांग्रेस और सपा के गठबंधन की भी कोई ख़बर नहीं है....उधर, भाजपा ने रालोद के साथ गठबंधन किया है.....बसपा अपने बूते चुनाव लड़ रही है...... कुल मिलाकर उत्तरप्रदेश में चुनावी ऊँट किस करवट बैठेगा इसी सोच में नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें खींची हुई..... 14 वीं लोकसभा में दूसरा बडा राज्य बनकर उभरा महाराष्ट्र ....सीटों के लिहाज से महाराष्ट्र देश का दूसरा बड़ा राज्य है, जहां लोक सभा की 48 सीटें हैं। पिछले चुनाव में 10 सीटों पर एनसीपी....13 पर कांग्रेस... 12 पर शिवसेना और 11 पर भाजपा को कामयाबी मिली थी.... इस बार भी मुकाबला कांग्रेस-एनसीपी और भाजपा-शिवसेना गठबंधन के बीच है......भाजपा और शिवसेना एकजुट तो हैं लेकिन मराठा-महाबली शरद पवार की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षाओं को बुजुर्ग हो चले सेना-प्रमुख बाल ठाकरे भी यदाकदा हवा देते रहते हैं..... महाराष्ट्र के समीकरण इस बार चुनाव में ही नहीं.....उसके बाद सरकार-गठन की प्रक्रिया को भी गहरे स्तर पर प्रभावित कर सकते हैं। तो दूसरी तरफ आंध्र में भी पार्टियों के हालात ठीक नज़र नही आ रहे है...आंध्र प्रदेश कांग्रेस का एक बड़ा सूबा है ....जहां से पार्टी को पिछले संसदीय चुनाव में 30 सीटें मिली थी.... राज्य में कांग्रेस की सरकार है और अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर प्रदेश में नया राजनीतिक समीकरण बनता दिखाई पड़ रहा है.... 42 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में विधानसभा चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ हो रहे हैं..... दक्षिण की फिल्मों के सुपरस्टार चिरंजीवी की प्रजाराज्यम पार्टी इस बार के चुनाव मैदान में है.... पिछले चुनाव में राजग के साथ खड़े टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने राजग से नाता तोड़ तीसरे मोर्चे की कमांन संभाली है.....भाजपा के सामने संकट तो है ही कांग्रेस को भी अपना वजूद बचाए रखने के लिए कड़ा यहां संघर्ष करना पड़ेगा। 14 वी लोकसभा में चौथी ताकतवर शक्ति बनकर उभरा बिहार.... 40 संसदीय सीटों वाले बिहार में असल लड़ाई दो राजनीतिक दिग्गजों के बीच है-लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार..... पिछले चुनाव में 24 सीटें जीतकर राष्ट्रीय जनता दल बड़ी ताकत बनकर उभरा और यूपीए सरकार में उसे कैबिनेट की तीन-तीन कुर्सियां मिलीं। राजद अध्यक्ष लालू यादव स्वयं रेल मंत्री बने..... ग्रामीण विकास और कारपोरेट मामलों के मंत्रालय पर भी राजद नेता ही विराजमान हुए...... लालू की राजद और रामविलास पासवान की लोजपा के बीच चुनावी-तालमेल हो गया है... संसदीय चुनाव में चाहे जो भी गठबंधन आगे रहे... केंद्र की अगली सरकार के गठन में बिहार अहम भूमिका निभाएगा......बिहार में असरदार दोनों क्षेत्रीय दलों-राजद और जद(यू)की हैसियत राष्ट्रीय दलों के मुकाबले यहां ज्यादा है.....
Posted by acharya at 9:51 PM 0 comments
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मीडिया जगत से एक और ख़बर जल्द आ रहा है एक और न्यूज़ चैनल
इलेक्ट्रानिक मीड़िया में लंबे समय से जुड़े रहने के कारण म.प्र. औऱ छ. ग. के लिए मुझे संपर्क किया गया अच्छा ख़ासा पैसा भी ऑफर किया गया.........हमारी बात लगभग 1 घंटे तक चली और मामला समझ आया कि अगर पैसा चाहिए तो करों दलाली.....चैनल की आई ड़ी बांटना है.....हां हां भई बिल्कुल सही...मैने यही कहा है...आई ड़ी बाटना है......एक नई चीज़ सामने आई अब इसे चीज़ ही कहना ज्यादा अच्छा लग रहा है......औऱ पत्रकार (कुछ ऐसे जिन्हें आर SLP कहें तो ज्यादा अच्छा है).......अब SLP क्या है ये मत पूछना..........ख़ैर ......भी नये किस्म के अब ये यह नहीं कहते हैं कि चैनल के लिए काम कर रहे हैं .....अब ये कहते हैं कि फलां चैनल की आई ड़ी ले आय़ें हैं............और फिर दिल्ली में बैठे मीडिया मालिकों के लिए तो म.प्र. औऱ छ. ग. किसी मेडिकल कालेज में स्ट्रेचर पर लेटे उस लाश की तरह जिस पर सारे मेड़िकल स्टूड़ेट तमाम तरह की रिसर्च करते हैं...........तो भईयां ऐसा है यहां का माहौल................ फिलहाल इतना ही ...........