
गांव तक ही रहने दो
नहीं तो
शहर सुन लेगा/आयेगा
सुहानुभूति का हाथ बढाकर
और
गांव
हवा पानी आग की तरह
शहर को मान लेगा
अपनी बिरादरी का
और स्वीकर कर लेगा
उसका आतिथ्य
फिर
दस्तख्त कर देगा
कोरे स्टाम्प पेपर पर
और
करता रहेगा
करता रहेगा शहर की चाकरी
पीढी-दर-पीढी
जाने कितनी पीढियों तक....।