दिल्ली के जंतर मंतर पर जाने से लगता है कि देश की हर सड़क अन्ना हज़ारे के धरने के पंडाल पर ख़त्म हो रही हो. लेकिन जंतर मंतर पर अन्य मसलों पर प्रदर्शन कर रहे लोगों के दरवाज़े पर ये सड़क ज़रा भी नहीं थमती.

आमरण अनशन पर बैठे अन्ना हज़ारे के स्वास्थ्य पर हर पल नज़र रखी जा रही हैं. सरकारी डॉक्टरों से ले कर निजी डॉक्टरों की एक फ़ौज उनके चारों तरफ़ खड़ी हैं.
अन्ना हज़ारे के पंडाल से बमुश्किल सौ मीटर की दूरी पर बैठे हर्ष कुमार भी अन्ना की तरह ही पांच तारीख़ से आमरण अनशन कर रहे हैं लेकिन उनकी सुध कोई नहीं ले रहा.
अकेले लड़ रहे है
हर्ष कुमार का कहना है, "बुधवार शाम को डॉक्टर ने मेरी जांच की थी उसके बाद से कोई देखने नहीं आया न कोई सरकार की तरफ से किसी किस्म की कोई प्रतिक्रिया आई है."

सूर्यवंशी का माना है कि भूख हड़ताल से कुछ खास हासिल नहीं होने वाला और रिश्वत की जगह जूता मारना ही भ्रष्टाचार का हल है लोकपाल बिल नहीं.
सुध नहीं ली
सूर्यवंशी कहते हैं, "पिछले चार साल में यहाँ जंतर मंतर पर जाने कितने लोगों ने भूख हड़ताल की, कितने लोगों ने जान दे दी, कितने धरने प्रदर्शन आए और चले गए लेकिन कुछ नहीं हुआ.''
जंतर मंतर के एक दूसरे कोने पर दिल्ली नगरपालिका दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी संघ भी धरने पर बैठे हैं लेकिन यहाँ भी कष्ट यही है की न सरकार न मीडिया कोई उनकी बात नहीं सुन रहा.
दिल्ली के जंतर मंतर की तुलना लंदन के हाइड पार्क और न्यू यॉर्क के टाइम स्क्वायर से की जाती है. बरसों से राजनितिक, ग़ैर राजनीतिक संगठन और आम लोग यहाँ आकर धरने प्रदर्शन कर रहे हैं.
बरसों पहले राष्ट्रपति भवन और संसद से कुछ ही दूरी पर दिल्ली का बोट क्लब मैदान प्रदर्शनों की स्थायी जगह थी. लेकिन कुछ बड़ी रैलियों में हुई हिंसा और सुरक्षा कारणों से प्रदर्शनों के अधिकृत रूप से जंतर मंतर के पास सड़क किनारे के फुटपाथ प्रदर्शनों और धरनों के लिए अधिकृत कर दिए गए
सौजन्य....bbc