हिंदोस्ताँ कहाँ है अब हिंदोस्तान में । इन बादलों की आँख में पानी नहीं रहा तन बेचती है भूख एक मुट्ठी धान में । तस्वीर के लिये भी कोई रूप चाहिये ये आईना अभिशाप है सूने मकान में । जनतंत्र में जोंकों की कोई आस्था नहीं क्या फ़ायदा संशोधनों से संविधान में......!!!