अभी अभी ......


Saturday, July 31, 2010

वाह रे बेरोजगारी…

नदी में डुबते हुए आदमी ने पुल पर चलते हुए आदमी को
आवाज़ लगायी "बचाओ… बचाओ…"

पुल पर चलते हुए आदमी ने रस्सी फेकी और कहा "आओ…"

नदी में डुबता आदमी रस्सी नही पकड पा रहा था
रह रह कर चिल्ला रहा था
"मै मरना नही चाहता… ज़िन्दगी बडी महंगी है…
कल ही तो मेरी एक MNC मे नौकरी लगी है…"

इतना सुनते ही बचाने वाले आदमी ने रस्सी खींच ली
और भागते हुए MNC कम्पनी पहुचा
उसने वहां की HR Manager को कहा
" अभी अभी आपकी कम्पनी का एक आदमी डुबकर मर गया है
और एक जगह खाली कर गया है… मै बेरोज़गार हु, मुझे ले लो"

HR Manager बोली
"दोस्त्… तुमने कुछ देर कर दी…
हमने पहले ही उस आदमी को नौकरी दे दी है
जो उसे धक्का दे कर तुमसे पहले यहां आया

Thursday, July 29, 2010

वो वक्त पुराना अच्छा लगता है......क्या आपको भी

चर्चाओं में वक्त पुराना अच्छा लगता है
कहीं कहीं पर नया ज़माना अच्छा लगता है
किसी किसी का आना अच्छा लगता है
लेकिन कुछ लोगों का जाना अच्छा लगता है
कभी किसी के सच पर भी विश्वास नहीं होता है
और किसी का सिर्फ बहाना अच्छा लगता है
हमने कई डिग्रियां ले ली पढ़ लिखकर,लेकिन
अब भी दादी का धमकाना अच्छा लगता है
मौटे मोटे धर्मग्रंथ पढ़ने के एवज़ में
बच्चों से दिल बहलाना अच्छा लगता है
तन्हाई की यादों के बादल घिर आने पर
तस्वीरों से दिल बहलाना अच्छा लगता है...

बीता हुआ पल...

नदी घरोंदे खेल -खिलौने बचपन अच्छे लगते थे
वो भी कैसे अच्छे दिन थे धूप के जंगल हंसते थे
मीलों फैले सन्नाटे,जादू ढलती शामों का
रस्ते रस्ते पगडंडी के रह रह घूंघरू बजते थे
दिन कोई बंजारों जैसे आते जाते बस्ती में
रातें जलें अलावों जैसी सुख दुख भीगे किस्से थे
ऋतुएं आंधी पानी जैसी मौसम कई बुजुर्गों से
कुशलक्षेम आते जाते की अक्सर पूछा करते थे
रिश्तों की अपनी परिभाषा पानी था संबंधों का
भोले भाले सीधे साधे लोग आईनों जैसे थे
सबके अपने अपने बोझे एक सोच थी एक सफर
छोटे बड़े पराए अपने सभी एक से दिखते थे

Sunday, July 4, 2010

क्या आप अरुंधती राय को जानते हैं?


आप अरुंधती राय को जानते हैं? आपमें से कई लोग कम से कम इतना जरूर जानते होंगे कि वह भारत की प्रसिद्ध लेखिका व समाजसेविका हैं। पर क्या आप यह जानते हैं कि उन्हें खुद को भारतीय कहने में शर्म आती है। हैरानी हो रही है न, पर यह सच है। यही नहीं, वह भारतविरोधी मुहिम भी चला रखी है, जिसमें उनका साथ दे रहे हैं कई एनआरआई भारतीय। मुहिम रूपी इस राष्ट्रविरोधी दुष्साहस का मकसद है, भारत से कश्‍मीर को आजाद कराना। जब पूरा देश 'नक्सलियो की इन हरकतों से परेशान है  तब एक रैली में अरुंधती राय बोल रही थी,‘  "न बददिमागो का ये कदमठीक है"
अपने देश की सहनशक्ति वाकई में असीम है कि एक तरफ, अपने ही देश के मतीभ्रष्ट नौजवानों का संगठन सिमी आईएसआई के इशारे पर देश में आतंकी वारदात को अंजाम दे रहा है और इंडियन मुजाहीद्दीन के नाम उसकी जिम्मेदारी भी ले रहा है। दूसरी तरफ, अल्पसंख्यक वोट बैंक बचाने लिए अपने ही देश के राजनेता सिमी के रहनुमा बने फिर रहे हैं। पुलिस की खुफिया शाखा और एसटीएफ के सूत्रों की मानें तो ऐसे आतंकियों को पनाह देने वालों में मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात व उत्तर प्रदेश के कई राजनेता और उद्योगपति शामिल हैं। राजनेताओं में कांग्रेस, भाजपा के अलावा कई क्षेत्रीय दलों के बड़े-छोटे पदाधिकारी भी शामिल हैं।
वाह! धन्य हैं भारतमाता और उसकी सहनशीलता, जिसकी कोख से पैदा लेकर, खून-पसीने से हासिल आजाद भारत में पल-बढ़कर कुछ लोग उसी मां की अस्मिता व अस्तित्व के खिलाफ वातावरण में जहर घोल रहे हैं। जिस अरुंधती राय व राजनेताओं पर भारत की जनता ने विश्‍वास किया और उन्‍हें देश और समाज के सेवक का दर्जा व सम्मान दिया, वे भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ या कहें भारत के सिरमौर कश्‍मीर को देश के नक्‍शे से मिटाने की खुलेआम पैरवी करने लगे हैं। एहसानफरामौशी का आलम यह है कि अरुंधती राय की अगुवाई में अमेरिका और यूरोप के तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ब्रिगेड तैयार की गई है, जिसमें अधिकतर एनआरआई भारतीय शामिल हैं। इस ब्रिगेड ने कश्‍मीर के अलगाववादियों की कट्टरवादी दलीलों का समर्थन करते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत विरोधी एक याचिका दायर की है। याचिका में संयुक्त राष्ट्र को जम्मू-कश्‍मीर में मानवता पर संकट से निपटने के लिए हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई गई है। याचिका में कश्‍मीर में पिछले माह मुसलमानों पर हुए हमलों पर चिंता व्यक्त की गई, जबकि 1989-90 में चार लाख से अधिक कश्‍मीरी पंडितों को घर-बार छोड़कर कश्‍मीर से भागने पर विवश करने की घटना का जिक्र तक नहीं किया गया है। शायद, अरुंधती राय ब्रिगेड के मानवाधिकार के दायरे में कश्‍मीरी पंडितों के बेघर होने का दर्द नहीं आता। खैर, याचिका में यह भी कहा गया है कि जम्मू क्षेत्र में मुस्लिम धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत को तबाह किया जा रहा है। और यह भी कि 1989 से कश्‍मीर में सशस्त्र स्वतंत्रता आंदोलन चल रहे हैं, जिन्हें कुचलने के लिए भारत की कार्रवाइयों से मानवाधिकार हनन की गंभीर घटनाएं हो रही हैं।
कैसी विडंबना है, इतना गंभीर आरोप लगाने वाले तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता इसी भूमि की पैदाईश हैं। क्या कभी आपने सहज भाव से भारत के नक्‍शे की कल्पना कश्‍मीर को अलग करके की है? क्या हमारे ही पूर्वजों ने इस देश की संप्रभुता और आजादी की खातिर अनगिनत कुर्बानियां दी थीं और गुलाम भारत को अपने खून से सींच कर अहलेचमन बनाया था? कल तक तो पाकिस्तान के भेजे आतंकी हमारे देश की संप्रभुता पर हमला कर रहे थे, अब तो अपने ही घर के लोग और वह भी जाने-माने लोग, स्वार्थ में इस कदर वशीभूत हो चुके हैं कि अपनी ही मां से गद्दारी करते उनकी रूह तक नहीं कांप रही हैं...

महंगाई

मरतोड़ महंगाई ने आम आदमी के लिए मुसीबतंे खड़ी कर दी है। उनका जीना मुहाल कर दिया है। कुछ दिनों के अंतराल में खाद्य तेलों के दाम में वृद्धि हो रही है। इस दौरान फल एवं सब्जियों, अनाज और तेल जैसी जरूरी चीजों की कीमतें अभी भी पिछले साल के मुकाबले अघिक है।
 इतनी बढी महंगाई ?    
 खाद्य पदार्थ  वर्तमान कीमत(रूपए)  कीमत एक वर्ष पूर्व(रू.)
 दालें  50 से 65 45 से 50
 सरसों तेल 55 से 65  48 से 50
 चीनी 27 21 से 22
 आटा  16 14
 देशी घी 230  195
 फल सेब 100 50 से 60
 अनार  80 50