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Thursday, March 31, 2011

भोपाल....हुआ...18 लाख पार

भोपाल नगर निगम क्षेत्र की जनसंख्या ने 18 लाख को पार कर लिया है, जबकि जिले की आबादी का आंकड़ा 23 लाख को छू रहा है। जनसंख्या 2011 के प्रारंभिक संकेतों के मुताबिक शहर की आबादी 10 वर्ष में करीब चार लाख बढ़ी है। जिले व शहर की जनसंख्या के आंकड़ों की आधिकारिक घोषणा अभी नहीं हुई है।

वर्ष 2001 में शहर की आबादी 14.23 लाख व जिले की आबादी 18.43 लाख थी। भोपाल शहर की आबादी में बैरागढ़ भी शामिल है, कोलार व केंटोनमेंट एरिया नहीं। जिले की आबादी में कोलार व बैरसिया भी शामिल है।

..और प्रदेश में

आबादी वृद्धिदर:3.96% की कमी

मध्यप्रदेश की जनसंख्या 7 करोड़ 25 लाख 97 हजार 565 हो गई है। यह देश की कुल जनसंख्या का छह फीसदी है। पिछले एक दशक में मध्यप्रदेश की जनसंख्या वृद्धि दर 24 फीसदी से कम होकर 20.30 फीसदी हो गई है। यानी जनसंख्या वृद्धि में बीते एक दशक में 3.96 फीसदी की कमी आई है।

मध्यप्रदेश एक नजर में
जनसंख्या- 7.26 करोड़ (लगभग) (2001 में 6.03 करोड़)
पुरुष- 3.76 करोड़ (2001 में 3.14 करोड़)
महिला- 3.5 करोड़ (2001 में 2.89 करोड़)
लिंगानुपात- 930 महिलाएं (2001 में 919)(प्रति हजार पुरुष पर)
शिशु लिंगानुपात (प्रति हजार लड़कों पर) 912 कन्याएं (2001 में 932)
आबादी का घनत्व (प्रति वर्ग किमी) - 236 (2001 में 196)
साक्षरता दर- 70.63 फीसदी (2001 में 63.74 फीसदी)
पुरुष साक्षरता- 80.53 फीसदी (2001 में 76.06 फीसदी)
महिला साक्षरता- 60.02 फीसदी (2001 में 50.29 फीसदी)

साक्षरता में अलीराजपुर फिसड्डी
साक्षरता के हिसाब से प्रदेश का अलीराजपुर 37.22 प्रतिशत सबसे फिसड्डी रहा। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार अविभाजित झाबुआ (अलीराजपुर सहित) जिले की साक्षरता का प्रतिशत 29.42 था।

पानी में पहरे दारी...

मध्य प्रदेश में गर्मी दोहरा संकट लाती है। एक तरफ पानी की किल्लत परेशानी बढ़ा देती है तो, दूसरी ओर पानी के लिए झगड़े में खून तक बहाने से गुरेज नहीं होता है। हर साल पानी को लेकर दर्जनों वारदातें होती हैं।
राज्य में हुई कम बारिश की वजह से पानी का संकट मार्च महीने के अंतिम सप्ताह से ही जोर पकड़ने लगा है। राज्य के 50 में से 37 जिले सूखाग्रस्त हैं और लोगों के लिए पानी हासिल करना मुश्किल हो रहा है। कई जिलों में तो आलम यह है कि लोगों को तीन से लेकर 10 दिन में एक बार ही पानी मिल पा रहा है ।

हम हैं 121 करोड़

वर्ष 2011 की जनगणना के अस्थायी आंकडों में हमने बडी दिलस्चप चीज देखी है इन आंकडों में यकीन करें तो हम आज 121 करोड़ हो गये हैं। यानी एक अरब बीस करोड़ जनगणना के अनुसार वर्ष 2011 द्वारा पेश इस रिपोर्ट में 2001 के मुकाबले इस बार जनसंख्या में 18 करोड़ यानी करीब 17.64 फीसदी की बढोत्तरी करली है हमने। इस जनगणना के अनुसार देश में 62 करोड़ 30 लाख पुरूष हैं जबकि महिलाओं की संख्या 58 करोड़ 60  लाख ही है। यानी पुरूषों की जनसंख्या में 17 फीसदी और महिलाओं कीजनसंख्य़ा में 18 फीसदी का इजाफा हुआ है।वहीं बेटा बेटी का अनुपात हमें  चिंता मेंडाल सकता है।अब यह अनुपात घटकर 1000 पुरुषों में 914 महिलाएं ही हैं। इस रिपोर्ट की सबसे अच्छी बात यह है कि महिला साक्षरता में हमने लंबी छलांग लगाई है।साथ ही जनसंख्या मामले में यूपी पहले नं पर और महाराष्ट्र दूसरे नं पर है....।

हरिशंकर परसाई के लेखन के उद्धरण

व्यंग्य लेखन को साहित्य में प्रतिष्ठा दिलाने में परसाई जी का योगदान अमूल्य है.आजादी के बाद के भारतीय समाज की स्थिति का आईना है उनका लेखन.उनकी पक्षधरता आम आदमी की तरफ है. परसाईजी का लेखन कसौटी भी है उन लोगों के लिये जो अपने को व्यंग्य लेखक मानते हैं. 1.इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं,पर वे सियारों की बरात में बैंड बजाते हैं. 2.जो कौम भूखी मारे जाने पर सिनेमा में जाकर बैठ जाये ,वह अपने दिन कैसे बदलेगी! 3.अच्छी आत्मा फोल्डिंग कुर्सी की तरह होनी चाहिये.जरूरत पडी तब फैलाकर बैठ गये,नहीं तो मोडकर कोने से टिका दिया. 4.अद्भुत सहनशीलता और भयावह तटस्थता है इस देश के आदमी में.कोई उसे पीटकर पैसे छीन ले तो वह दान का मंत्र पढने लगता है. 5.अमरीकी शासक हमले को सभ्यता का प्रसार कहते हैं.बम बरसते हैं तो मरने वाले सोचते है,सभ्यता बरस रही है. 6.चीनी नेता लडकों के हुल्लड़ को सांस्कृतिक क्रान्ति कहते हैं, तो पिटने वाला नागरिक सोचता है मैं सुसंस्कृत हो रहा हूं. 7.इस कौम की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने में जा रही है. 8.अर्थशास्त्र जब धर्मशास्त्र के ऊपर चढ़ बैठता है तब गोरक्षा आन्दोलन के नेता जूतों की दुकान खोल लेते हैं. 9.जो पानी छानकर पीते हैं, वे आदमी का खून बिना छना पी जाते हैं . 10.नशे के मामले में हम बहुत ऊंचे हैं. दो नशे खास हैं--हीनता का नशा और उच्चता का नशा, जो बारी-बारी से चढ़ते रहते हैं. 11.शासन का घूंसा किसी बडी और पुष्ट पीठ पर उठता तो है पर न जाने किस चमत्कार से बडी पीठ खिसक जाती है और किसी दुर्बल पीठ पर घूंसा पड़ जाता है. 12.मैदान से भागकर शिविर में आ बैठने की सुखद मजबूरी का नाम इज्जत है.इज्जतदार आदमी ऊंचे झाड़ की ऊंची टहनी पर दूसरे के बनाये घोसले में अंडे देता है. 13.बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज्जत बच जाती है. 14.मानवीयता उन पर रम के किक की तरह चढती - उतरती है,उन्हें मानवीयता के फिट आते हैं. 15.कैसी अद्भुत एकता है.पंजाब का गेहूं गुजरात के कालाबाजार में बिकता है और मध्यप्रदेश का चावल कलकत्ता के मुनाफाखोर के गोदाम में भरा है. देश एक है. कानपुर का ठग मदुरई में ठगी करता है, हिन्दी भाषी जेबकतरा तमिलभाषी की जेब काटता है और रामेश्वरम का भक्त बद्रीनाथ का सोना चुराने चल पडा है. सब सीमायें टूट गयीं. 16.रेडियो टिप्पणीकार कहता है--'घोर करतल ध्वनि हो रही है.'मैं देख रहा हूं,नहीं हो रही है.हम सब लोग तो कोट में हाथ डाले बैठे हैं.बाहर निकालने का जी नहीं होत.हाथ अकड जायेंगे.लेकिन हम नहीं बजा रहे हैं फिर भी तालियां बज रही हैं.मैदान में जमीन पर बैठे वे लोग बजा रहे हैं ,जिनके पास हाथ गरमाने को कोट नहीं हैं.लगता है गणतन्त्र ठिठुरते हुये हाथों की तालियों पर टिका है.गणतन्त्र को उन्हीं हाथों की तालियां मिलती हैं,जिनके मालिक के पास हाथ छिपाने के लिये गर्म कपडा नहीं है. 17.मौसम की मेहरवानी का इन्तजार करेंगे,तो शीत से निपटते-निपटते लू तंग करने लगेगी.मौसम के इन्तजार से कुछ नहीं होता.वसंत अपने आप नहीं आता,उसे लाना पडता है.सहज आने वाला तो पतझड होता है,वसंत नहीं.अपने आप तो पत्ते झडते हैं.नये पत्ते तो वृक्ष का प्राण-रस पीकर पैदा होते हैं.वसंत यों नहीं आता.शीत और गरमी के बीच जो जितना वसंत निकाल सके,निकाल ले.दो पाटों के बीच में फंसा है देश वसंत.पाट और आगे खिसक रहे हैं.वसंत को बचाना है तो जोर लगाकर इन दो पाटों को पीचे ढकेलो--इधर शीत को उधर गरमी को .तब बीच में से निकलेगा हमारा घायल वसंत. 18.सरकार कहती है कि हमने चूहे पकडने के लिये चूहेदानियां रखी हैं.एकाध चूहेदानी की हमने भी जांच की.उसमे घुसने के छेद से बडा छेद पीछे से निकलने के लिये है.चूहा इधर फंसता है और उधर से निकल जाता है.पिंजडे बनाने वाले और चूहे पकडने वाले चूहों से मिले हैं.वे इधर हमें पिंजडा दिखाते हैं और चूहे को छेद दिखा देते हैं.हमारे माथे पर सिर्फ चूहेदानी का खर्च चढ रहा है. 19.एक और बडे लोगों के क्लब में भाषण दे रहा था.मैं देश की गिरती हालत,मंहगाई ,गरीबी,बेकारी,भ्रष्टाचारपर बोल रहा था और खूब बोल रहा था.मैं पूरी पीडा से,गहरे आक्रोश से बोल रहा था .पर जब मैं ज्यादा मर्मिक हो जाता ,वे लोग तालियां पीटने लगते थे.मैंने कहा हम बहुत पतित हैं,तो वे लोग तालियां पीटने लगे.और मैं समारोहों के बाद रात को घर लौटता हूं तो सोचता रहता हूं कि जिस समाज के लोग शर्म की बात पर हंसे,उसमे क्या कभी कोई क्रन्तिकारी हो सकता है?होगा शायद पर तभी होगा जब शर्म की बात पर ताली पीटने वाले हाथ कटेंगे और हंसने वाले जबडे टूटेंगे