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Monday, February 8, 2010

प्रथम भारतीय नवजागरणकाल में वेद धर्म और विचारधाराएं


प्रथम भारतीय नवजागरणकाल में वेद धर्म और विचारधाराएंप्राचीन भारतीय सभ्यता औऱ संस्कृतियों के विकास का इतिहास, धर्मों के विकास औऱ उनके स्वरूपों के प्रत्यक्ष में आने की एक गहरी परंपरा का ही इतिहास है। प्रत्येक युग या आने वाले समय में धार्मिक बदलाव आये जिनका समाज पर भी गहरा प्रभाव पड़ता गया। प्रत्येक नये धर्म के साथ पुराने धर्मों की छाप वैसे ही पड़ती गई जैसे नये विकसित संस्कृति पर पिछली संस्कृति की छाप पड़ती है। कभी-कभी तो इन नये धर्मों का आभास तक नहीं होता। औऱ कभी धर्म के विभिन्न रूपों में जमकर तथा खुला संघर्ष होता है। भारतवर्ष भी इस खुले धार्मिक संघर्ष से अछूता नहीं रहा है। 3500 वर्षों पहले तक भारत भी ऐसे ही खुले संघर्ष औऱ अंधविश्वासों में ड़ूबा रहा है। ऐसी व्यवस्था के विरूद्ध होने वाले परिवर्तन की ही प्रथम भारतीय पुर्नजागरण की संज्ञा प्रदान की हालांकि इस काल से पूर्व भारत वैदिक युग और पुरोहित सभ्यता के काल से भी गुजरा। वैदिक सभ्यता के उदय से पहले भी भारत में एक शक्तिशाली व्यवस्था एवं सभ्यता विद्यमान थी जो इस युग के लिए भी आदर्श है। इस युग के धर्मों में ना कोई राजा था ना कोई प्रजा, ना कोई दास ना कोई स्वामी। लेकिन समय के साथ ही संपत्ति पर अधिकार के व्यक्तिगत स्वरूप ने एवं अनार्यों के आगमन के साथ ही यह उज्जवल सभ्यता धूमिल होती गई, एवं 4500 वर्ष पहले महाभारत काल के साथ ही यह सभ्यता भी समाप्त हो गई। असुर संस्कृति औऱ सामाजिक पद्धति ने इसे मिटाकर इसकी जगह धर्म और अनुष्ठान के पाखंड की स्थापना आज से लगभग 4500-5000 वर्ष पहले “पुरोहित युग” के रूप में कर दी जिसे आज हम “ब्राह्मण युग” के रूप में जानते हैं। जिसका समय 2000 या इससे कुछ अधिक समय तक रहा। यह भारतीय समाज का सबसे उत्पीड़क अंधकार युग था। लगभग 1500 साल चले इस ब्राह्मण युग मे असहनीय पीड़ा, चारों ओर अंधकार, हाहाकार, यज्ञों की बलिवेदी से निकलते दुर्गंध युक्त ताप से चारों तरफ व्याकुलता छाई थी। लेकिन जिस तरह बुरे सपनें काली रातों काली रातों के बीत जाने पर समाप्त हो जाते हैं केवल उनकी स्मृतियां शेष रह जाती है। वैसे ही यह युग भी बीत गया। औऱ इस समय कुछ ऐसी परिस्थियां बनी जिन्होंने नवजागरण काल के लिए एक मंच तैयार किया। हालांकि इस मुक्ति संघर्ष में भारत को 1500 साल लग गये। यही हमारा प्रथम नवजागरण काल था। कितने ही कठिन संघर्षों के बाद हमने वो काली और भयावह रात पार की। लेकिन यह गर्वयोग्य बात है कि इन 1500 शताब्दीयों तक भारतीय समाज जीवत रहा और अगली 15 शताब्दियों तक ही अपने पुर्नजन्म के लिए संघर्ष करते हुए समस्त विश्व का मार्गदर्शन करता रहा। इस प्रथम भारतीय नवजागरण काल में हमारे वेदों धर्मों और विचारधाराओं ने अतुलनीय योगदान दिया।

उपनिषद काल

जब कोई अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन अपना स्वरूप विस्मृत कर विकृत स्वरूप में प्रकट होती है तो सामाजिक विकास के मार्ग अवरूद्ध होने लगते हैं। पुरोहित या ब्राह्णणयुग एक ऐसी ही विकृत सामाजिक व्यवस्था थी। यद्यपि यह 15 सौ वर्षों तक चला पर अंत में इसे जाना पड़ा। इस युग के विरूद्ध कार्य करने वाली परिस्थियां आज से 35 शताब्दियां पहले ही तैयार होने लगी थी। इस कार्य को करने वाले लोग आड़बंर मुक्त थे। इनका जीवन आकर्षक सीधा सादा, सरल तेजमय तो था ही उनकी विचारशैली उत्तेजक एवं मस्तिष्क के द्वार खोलने वाली भी थी। ये लोग भोग विलास औऱ राजमहलों से दूर तपोंवनों में बैठ कर सर्वसाधारण से बात करते थे, सबसे पहले इन्होनें ही गौ को माता कहा औऱ अवधनीय माना। इन्होंने मांस भक्षण बंद कराकर शाकाहार को प्रोत्साहन दिया। 3500 वर्षों तक अंधकार में ड़ूबे लोगों को सही रास्ता दिखाने वाले ये लोग थे। उपनिषदों के महर्षि। ये जन विचारक लोग ममत्व जाति की पीड़ाओं को स्वंय झेल कर उनके लिए नये मार्ग प्रशस्त करते थे। अपने संबंध मे इन्होंने घोषणा की थी-

न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग नापुन भर्वम्

कामये दुखतप्तानां प्राणि नामर्तिनशम्

इन महापुरूषों के विचार उपनिषदों में अंकित हैं। इन महामानवों ने ये ग्रंथ जनता के समीप बैठकर, उनके आवेगों को ध्यान में रखकर लिखा इसलिए अर्थात् “ समीप बैठकर लिखी” कहा जाता है।

उपनिषद् के ऋर्षि केवल ब्राह्णण ही नहीं थे बल्कि अब्राह्मण भी थे, अल्पब्रक इनमें प्रमुख हैं। उपनिषदों के ऋषिर्यों ने पुरोहितवाद के आड़म्बर पर गहरा प्रहार करते हुए शताब्दियों से दबी, गूगीं, बहरी जनता के लिए धर्म के वैकल्पिक रूप प्रस्तुत कियें औऱ प्रगति के द्वार खोल दिये। इन्होंने शारीरिक श्रेष्ठता पर प्रहार करते हुए ज्ञान को श्रेष्ठता पर दिया। क्योंकि ज्ञान पर किसी जाति विशेष का अधिकार तो होता नहीं है। इतना ही नहीं ज्ञान की श्रेष्ठता को सिद्ध करते हुए इन्होंने स्त्री जाति को अनैतिक सामाजिक बंधनों से छुटकारा दिला दिया, इससे पहले पुरोहित युग तक नारी का स्वरूप दासी का था। मार्गों और मैत्रेयी इस काल की प्रमुख उपलब्धि थी जिनके ब्रह्म ज्ञान को हम नकार नहीं सकते हैं। इस युग तक चली आ रही कुंठित मानव मस्तिष्क में नई चेतना का संचार किया। उपनिषदकारों ने मानव जीवन के प्रत्येक मूल प्रश्न पर मौलिकता से विचार मंथन किया। यह युग लगभग हजार सालों तक चला जिसमें याज्ञवल्लव, उद्दालय, गार्गी, यैत्रेमी, कणाद, गौतम, कपिल, बादरायण आदि नास्तिक ऋषियों ने समाज को आड़म्बर से निज़ात दिलाई और नवजागरण काल के लिए आधार स्थल तैयार किया।

गौतम बुद्ध का जनान्दोलन

उपनिषदों का ज्ञान मानवों की मासिक संकीर्णता को दूर कर रहा था, परंतु अति सीमित क्षेत्र तक ही अर्थात् यह केवल शिक्षित वर्ग ही था। लेकिन इस कार्य को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया एक ऐतिहासिक पुरूष गौतम बुद्ध ने। इन्होंने मानस पटल पर संकीर्णता मिटाने को कार्य के साथ ही समस्त विश्व में ज्ञान की ज्योत जलाई। इन्होनें ज्ञान की इस, लहर से जनमानस को उस समय भिगोया जब देश दो विभिन्न संस्कृतियों औऱ व्यवस्थाओं के संक्रमण काल से गुजर रहा था। एक तरफ जहां उपनिषदकारों का प्रभाव क्षीण हो रहा था औऱ दूसरी तरफ भारतीय जनता अंधकार में ड़ूबी थी,गौतम बुद्ध ने ज्ञान को संयत और स्पष्ट रूप से प्रकट किया, इनके विचारों ने आने वाले 500 सालों तक जनमानस को प्रभावित करते रहे।

ईसा पूर्व 500 वर्ष पहले गौतम बुद्ध शाक्य गणतंत्र के राजा शुद्धोधन के यहां उत्पन्न हुए। बचपन से ही किसी दुखित प्राणी को देखकर दुखी हो जाते औऱ उस दुख से खुद को ग्रस्त अनुभव करते। किसी दुख के बचाव का मध्यम मार्ग निकालने की राह पर सिद्धार्थ से बोधिसत्व और गौतम बुद्ध बन गये।

गौतम बुद्ध किसी तपोवन में सन्सासी बनकर बल्कि जीवन भर घूम घूमकर लोगों के दुखों का निवारण करते रहे। “चरैवेति चरैवेति” का नारा देकर अपने समस्त अनुयायियों को संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते रहने की प्रेरणा दी। इन्होंने अंहिसा और शांति को मानवता जीनव की सबसे बड़ी पूंजी माना। गौतम बुद्ध ने उपनिषदकारों औऱ अपने विचारों में कोई अंतर नहीं मानते थे। परंतु उपनिषदकारों के विचारों और ज्ञान में पुरोहित वर्ग और उनके स्वार्थों पर गहरी चोट नहीं की। जबकि बुद्ध के विचारों ने जनमानस के हृदय स्थल पर जाकर नई आशाओं का संचार किया। इनके विचारों को एक स्पष्ट जनाधार मिला। इनके उद्देशों के कारण ही पशु हिंसा समाप्त प्राय: हो गई और खेती के रूप में नई व्यवस्था का प्रचलन हुआ इनके द्वारा दिये गये उपदेशों के कारण ही अगले 4-5 सौ सालों में काबिला और दास प्रथा का अंत हो गया। पूरे भारतीय इतिहास में गौतम बुद्ध एकमात्र ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति थे जिनके विचारों ने सदियों तक भारतीय समाज के साथ साथ संपूर्ण विश्व को सघन रूप तक प्रभावित किया।

भारतीय नवजागरण में उपनिषदों के पश्चात् सबसे महत्तवपूर्ण स्थान बौद्धों के जनांदोलन का रहा। उन्होनें हजारों वर्षों से चली आ रही रूढ़ियों और अंधविश्वासों में ड़ूबी भारतीय जनता में नई स्फूर्ति भरी उनमें आत्मबोध जाग्रत कर नई परिस्थियों का सामना करने के योग्य बनाया

जैन धर्म का योगदान

गौतम बुद्ध की तरह ही राज परिवार में जन्में महावीर स्वामी भी उन्ही की तरह कष्टों से मुक्ति दिलाने को ललायित थे। इन्होनें बड़ी सत्य निष्ठा और प्रबलता के साथ यज्ञों में हिंसा का प्रतिरोध किया। लेकिन यह बौद्ध धर्म की तरह एक व्यापक जनादोंलन नहीं बन सका और प्रारंभ से ही एक वर्ग विशेष तक सीमित रहा। फिर भी दार्शनिकता के क्षेत्र में उनकी प्रगतिशील भूमिका का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। उसका स्यादवाद दर्शन पुरानी निष्ठाओं और अंधविश्वासों पर कड़ा प्रहार करता है और सोच के विपरीत आचरण को भी धर्म मानता है। शताब्दियों तक जिन यज्ञानुष्ठानों को धर्म का एक हिस्सा मान लिया गया था, उसके विरूद्ध जैन धर्म ने संघर्ष कर सामाजिक चेतना को जाग्रत किया।

चार्वाक की भूमिका

भारत के प्रथम पुर्नजागरण काल में चार्वाक की भी महत्तवपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने वेद ऋषियों के विचारों का सर्मथन करते हुए आडंबर पूर्ण कर्म कांडों यज्ञानुष्ठानों की कड़ी आलोचना करते हुए इसके समांतर ज्ञान की श्रेष्ठता स्थापित की। इन्होनें पशु बलि का घोर विरोध किया एक ओर उपनिषदकारों, बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म ने उपनिषत्कारों की शैली में ही वेदों की मान्यता का आदर किया वहीं दूसरी ओर चार्वाक ने दार्शनिक प्रतिक्रिया बौद्धिक संघर्ष चलाया। इनके दर्शन की पुराणों में व्यापक चर्चा की है।

पुराणों के अनुसार महाभारत की समाप्ति के बाद जब कलियुग का प्रवेश हुआ तभी चार्वाक का भी प्रवेश हुआ। इन्होंने वेदों की निंदा और वैदिक धर्म का खंडन करते हुए ईश्वरवाद, कर्मकांड़, आस्तिकवाद तथा आड़म्बरों का घोर विरोध किया चार्वाक ने सृष्टि से लेकर लौलिक दिनचर्या तक सभी कर्मों पर गंभीरता से विचार किया है।

विभिन्न दार्शनिक मान्याताएं और उनका योगदान

कई शताब्दियों तक भारतीय समाज ने अपने मस्तिष्क से काम लेना बंद कर दिया था एवं वेदो औऱ पुरोहित वर्ग के आदर्शों के रूप में दासता का अंधेरा अपने चारों और पाल लिया था, उसी समाज को विभिन्न बौद्धिक स्तरों के आधार पर छोड़कर स्वतंत्र चिंतन की शुरूआत की गई। इसी स्वतंत्र चिंतन की बदौलत स्वर्ग प्राप्ति और मोक्ष के लिए यज्ञों के माध्यमों से की जा रही है हिंसा पर रोक लगाना संभव हो पाया।

मक्खली या मस्करी पुत्र गोसाल कम्बली पकुदकचायन, निगण्ठनाथ आदि दार्शनिकों ने स्वर्ग, मोक्ष, पुर्नजन्म, अग्रिम जन्म, पुरोहित औऱ भी नाना प्रकार की कुरीतियों के लिए भारतीयों के मन में नवजागरण की लहर पैदा की। इनका मानना था स्वर्ग और मोक्ष की चिंता में इस जीवन में इस जीवन को दुखों में ड़ुबोकर रखना व्यर्थ है। अजितकेश कंबली तो मानव जीवन की निकृष्ठतम वस्तु को भी रूचिकर सिद्ध करते हुए मानव केशों से बने कंबल पहना और ओढा करते थे।

इन सभी दार्शनिकों ने पुरोहितवाद के निविड़ अंधकार के विवरण-आन्दोलन को आगे बढ़ाया औऱ समाज के बौद्धिक, सामाजिक, आर्थिक रूप से विकास की नई दिशा प्रदान की।

यह भारतीय नवजागरण का वह समय था जब जीनव के सारे पुरातन समीकरण बदल गये थे। नई बौद्धिक औऱ सांस्कृतिक दशाएं उत्पन्न हो गई थी। इस समय के बाद लगभग 150 सालों से आ रही कुरीतियों का किला ध्वस्त हो गया, इसके विरूद्ध पूरे भारत वर्ष में हमारे दार्शनिक, चिन्तकों जन-आंदोलनकारियों ने नये भारतीय समाज के लिए आवश्यक परिस्थियां तैयार की। इसी नवजागरण के फलस्वरूप ही भारत ने एक नये राष्ट्र के रूप में जन्म लिया औऱ एक राजनैतिक इकाई के रूप में उभरा।

प्रदेश में महिलाओं की स्थिति

प्रदेश में महिलाओं की स्थिति
मध्य प्रदेश में इन दिनों प्रशासन प्रदेश में महिलाओं सुदृढ़ स्थिति को लेकर फुले नहीं समा रहा है.राज्य सरकार का मानना है कि प्रदेश में महिलाओं की दयनीय हालत में सुधार हुआ है....विगत विधान सभा से लेकर पंचायत चुनावों तक महिलाए सशक्त रूप से सामने आई है,लेकिन इस महिमा मंड़न के बाद भी प्रदेश में महिलाओं के साथ क्या-क्या हो रहा है यह बात किसी से छुपी नहीं है....प्रदेश में महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए ना कितने तरह से प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन बावजूद इसके हालात अब भी चिंता जनक ही हैं...

राजनीतिक स्थिति और हकीकत
शासन का दावा है कि प्रदेश में महिलाओं के मौजूदा हालातों में सुधार हुआ है महिलाओं को पुरूषों के बराबर का स्थान मिला है पर कितना....प्रशासन की कहना है कि इस समय प्रदेश में...एक लाख अस्सी हजार महिला पंच हैं..ग्यारह हजार पांच सौ बीस महिला सरपंच हैं...तीन हजार चार सौ महिला जनपद सदस्य हैं...चार सौ पंद्रह महिला जिला पंचायत सदस्य हैं...पांच सौ छप्पन जनपदों और पच्चीस जिला पंचायतों में महिला अध्यक्ष हैं...एक हजार सात सौ अस्सी महिला पार्षद हैं...पन्चानवे नगर पंचायत में महिला अध्यक्ष हैं...बत्तीस नगर पालिका में महिला अध्यक्ष हैं...आठ नगर निगमों में महिला महापौर हैं.....ये आंकड़े हैं राज्य भर में महिलाओं की राजनीतिक स्थिति के, यानी की प्रदेश की कुल 6 करोड़ की आबादी मे महिलाओं की जनसंख्या 2.5 करोड के आसपास हैं इस पूरी जनसंख्या में 3 करोड़ से भी ज्यादा पुरूष हैं...ऐसे में सिर्फ उंगलियों की संख्या में गिनी जाने वाली महिलाओं की इस उपलब्धता पर किसे गर्व करना चाहिए...6 करोड़ आबादी वाले इस प्रदेश में महिलाएं आज भी हाशिये पर हैं...इनके पास आज भी इनकी आंखों में आंसुओं के आलवा कुछ भी नहीं है... शिवराज द्वारा घोषित महिला नीति का अभी तक क्रियान्वयन नहीं हुआ।प्रदेश सरकार भले ही यह कहकर हल्ला मचा रही है कि राज्य में महिलाओं को पुरूषों के बराबर हक दिया गया है तो खुद शिवराज की सरकार में महिलाओं की कितनी पहुंच है इसका जीता जागता प्रमाण भी है कि...230 सदस्यों वाली विधानसभा में कुल 25 महिलाएं विधायक हैं,सिर्फ दो महिलाएं ही मंत्रिमंडल में जगह पा सकीं एक हैं कैबिनेट मंत्री अर्चना चिटनीस हैं तो दूसरी स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री रंजना बघेल हैं।शिवराज सिंह चौहान के दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद होने वाले पहले विस्तार को लेकर महिला विधायक अपनी बारी का इंतजार कर रहीं थीं मगर ऐसा नहीं हुआ।
अत्याचार और महिलाएं
-यानी कहा जाये कि शासन के आकंड़े सिर्फ दिखावे के लिए हैं तो कोई ज्यादती नहीं होगी...ये बात रही महिलाओं की राजनीतिक पोजिशन की... लेकिन इन सबसे दूर समाज की एक और हकीकत है जहां आज भी महिलाओं पर अत्याचार बदस्तूर जारी हैं...ख़ुद को घुटन से आजादी दिलाने में लगी महिलाओं ने जब भी अपने लिए आवाज उठाई हैं उन्हें इस पुरूष प्रधान समाज में अगर कुछ मिला है तो सिर्फ यातना और कुछ नहीं...हालातो को चाहे जैसे दिखाया जाये लेकिन राज्य भर में महिला उत्पीड़न के मामले बढ़ते जा रहे हैं...प्रदेश सरकार भले अपने 5 सालों के आंकड़ों पर गर्व से सीना ठोंक रही हो लेकिन पिछले एक साल के आंकड़े ही इस पूरे महिमा मंड़न का मिथक तोड़ रहैं हैं...आज भी महिलाएं समाज के ठेकेदारों के लिए सिर्फ अपने रौब को जमाने का माध्यम मात्र हैं..इसकी जीती जागती मिशाल है ये आंकड़े....देश में महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों में तीस प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इसमें मध्यप्रदेश पहले नंबर है।....भाजपा की प्रदेश में सरकार बनने से लेकर अब 13 हजार से भी ज्यादा महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना घटी हैं।...धार जिले में दो महिलाओं को बुरी तरह पीटा गया और उनके मुंह पर कालिख पोतकर उन्हें निर्वस्त्र किया गया....प्रदेश में आदिवासी, दलित एवं नाबालिक युवतियां बड़ी संख्या में बलात्कार की शिकार हुई हैं।...शिवपुरी जिले के पिछोर थाना एक मां अपनी सामाजिक प्रताड़ना से तंग आकर तीन बेटियों के साथ आत्महत्या कर लेती हैं...सिर्फ इतना ही नही ये आंकड़े तो उन जगहों के हैं जहां पर महिलाओं का शोषण कोई नयी बात नहीं हैं....लेकिन एक और पहलु है जहां पर महिलाएं की सुरक्षा खुद कई सवाल खड़े करती है....जी हां मैं बातकर रहा हूं पुलिस महकमे की....प्रदेश में ऐसे कई घटनाएं हैं जिन्होनें कानून को भी दीगर शोषणकर्ताओं के साथ लाकर खड़ा कर दिया है...कानून के ठेकेदार आज खुद ही महिलाओं के दलाल बन गये हैं....प्रदेश में ऐसे कई मामले हैं जिनसे वर्दी भी दागदार हुई है....बालाघाट जेल में 15 फरवरी 05 की रात 9 बजे एक जेल अधिकारी ने महिला वार्ड खुलवाकर महिला बन्दियों के साथ बलात्कार किया ...आमला थाने में एक दलित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया..नीमच में 20 अक्टूबर 07 को 15 वर्षीय बालिका के साथ 5 युवकों ने बलात्कार किया और विरोध करने पर भरी पंचायत में बालिका के परिवार को अपमान सहना पड़ा…इन आकंड़ों पर तो कोई भी कह सकता है कि पुरानी बात है लेकिन मैं आपको बता कि जनवरी 2009 से जनवरी 2010 तक आंकडे किसी की भी आंखें खोलने के लिए पर्याप्त होगें इस एक साल के महिलाओं पर हुए आत्याचारों पर नज़र ड़ाली जाये तो इस समय सीमा में पूरे प्रदेश के 17 जिलों में महिलाओं केसाथ बलात्कार के 755,हत्या के 110,हत्या के प्रयास के 147, दहेज से मौत के 248 और अपहरण के 220 मामले सामने आये हैं । इनमें बलात्कार के सबसे ज्यादा मामलों में बैतूल 130 खंडवा 70 राजगढ़ में 67 और छ्त्तरपुर में 64 मामले दर्ज किये गये हैं ...ये तो वे आकंड़े हैं जो पुलिस रिकार्ड़ में दर्ज हैं...इनके आलावा ना जाने और ऐसे कितने अमानवीय कृत्य हैं जिनकी सच्चाई सामाजिक बंधनों और ड़र की वज़ह से सामने नहीं आ पाये।
प्रशासन की योजनाएं और महिलाएं

यह अलग बात है कि शासन हर स्तर पर महिलाओं के लिए शासकीय योजनाओं का ठीठोंरा तो पीटती रहती है....महिलाओं के हितों में काम करने के लिए शासन के कई विभाग बना दिये गये हैं..कई योजनाएं क्रियान्वित की गई लेकिन हालात आज भी हैं....समाचार पत्रों और बड़े-बड़े आयोजनों के माधयम से मधयप्रदेश में महिला सशक्तिकरण की मुनादी भले ही की जा रही है। पूर्व से संचालित परिवार परामर्श केन्द्रों की तरफ शासन का धयान शायद हट सा गया है इनके कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दिया जा रहा है। यह परिवार परामर्श केन्द्र बंद होने की स्थिति में आज खड़े हैं। यही हाल महिला परामर्श केन्द्रों का भी है वहाँ भी शिशु-बालिका भ्रूण हत्या को प्रदेश सरकार ने कठोर अपराधों की श्रेणी में रखा है। लेकिन पिछले कई वर्षों में एक भी प्रकरण इसके अंतर्गत पंजीबध्द नहीं किया। इसी प्रकार भ्रूण हत्या की जानकारी देने वाले व्यक्ति की 10 हजार रुपये का इनाम देने की घोषणा इस सरकार ने की थी, किंतु पिछले वर्षों से किसी को भी यह ईनाम नहीं बांटा गया। इस बात बिल्कुल इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत के 14 जिलों में से मधयप्रदेश के भिण्ड और मुरैना में सर्वाधिक भ्रूण हत्याऐं होती हैं। महिलाओं के लिये संचालित अनेक योजनाएँ भ्रष्टाचार से अछुती नहीं है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका पर्यवेक्षक, आदि की नियुक्ति में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। साइकिल घोटाला, जननी सुरक्षा योजना, पोषण आहार, गरीबी रेखा, राशन कार्ड में धांधाली, पेंशन, नर्सिंग, कन्यादान योजनान्तर्गत दहेज खरीदी, लाड़ली लक्ष्मी योजना, अन्न प्राशन योजना, गोद भराई आदि योजनाएँ मात्र विज्ञापन और कागजों पर ही फलफूल रही हैं।मुख्य मंत्री कन्यादान योजना के अंतर्गत शहडोल जिलें में जिस तरह से महिलाओं के साथ कोमोर्य परीक्षण का मामला हमारे सामने है। बावजूद इसके शासन का यह दावा कि प्रदेश में महिलाएं सुरक्षित ,समृद्ध और सशक्त हैं किसी आलिफ लैला की कहानियों से कम दिलचस्प नहीं है....





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