चर्चाओं में वक्त पुराना अच्छा लगता है
कहीं कहीं पर नया ज़माना अच्छा लगता है
किसी किसी का आना अच्छा लगता है
लेकिन कुछ लोगों का जाना अच्छा लगता है
कभी किसी के सच पर भी विश्वास नहीं होता है
और किसी का सिर्फ बहाना अच्छा लगता है
हमने कई डिग्रियां ले ली पढ़ लिखकर,लेकिन
अब भी दादी का धमकाना अच्छा लगता है
मौटे मोटे धर्मग्रंथ पढ़ने के एवज़ में
बच्चों से दिल बहलाना अच्छा लगता है
तन्हाई की यादों के बादल घिर आने पर
तस्वीरों से दिल बहलाना अच्छा लगता है...
Thursday, July 29, 2010
बीता हुआ पल...
नदी घरोंदे खेल -खिलौने बचपन अच्छे लगते थे
वो भी कैसे अच्छे दिन थे धूप के जंगल हंसते थे
मीलों फैले सन्नाटे,जादू ढलती शामों का
रस्ते रस्ते पगडंडी के रह रह घूंघरू बजते थे
दिन कोई बंजारों जैसे आते जाते बस्ती में
रातें जलें अलावों जैसी सुख दुख भीगे किस्से थे
ऋतुएं आंधी पानी जैसी मौसम कई बुजुर्गों से
कुशलक्षेम आते जाते की अक्सर पूछा करते थे
रिश्तों की अपनी परिभाषा पानी था संबंधों का
भोले भाले सीधे साधे लोग आईनों जैसे थे
सबके अपने अपने बोझे एक सोच थी एक सफर
छोटे बड़े पराए अपने सभी एक से दिखते थे
वो भी कैसे अच्छे दिन थे धूप के जंगल हंसते थे
मीलों फैले सन्नाटे,जादू ढलती शामों का
रस्ते रस्ते पगडंडी के रह रह घूंघरू बजते थे
दिन कोई बंजारों जैसे आते जाते बस्ती में
रातें जलें अलावों जैसी सुख दुख भीगे किस्से थे
ऋतुएं आंधी पानी जैसी मौसम कई बुजुर्गों से
कुशलक्षेम आते जाते की अक्सर पूछा करते थे
रिश्तों की अपनी परिभाषा पानी था संबंधों का
भोले भाले सीधे साधे लोग आईनों जैसे थे
सबके अपने अपने बोझे एक सोच थी एक सफर
छोटे बड़े पराए अपने सभी एक से दिखते थे
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