जाने कितने मरने वाले इनसे जीवन पा जायेगें
गा दोगे तुम गीत मेरे तो ये अमुत बन जायेगें
मद मस्त पवन हो जायेगी कोयल सुनकर शरमाएगी
कण कण नर्तन कर झूमेगा,सुर लोक धरा हो जायेगी
गंधर्व अप्सराएं धरती पर,आने को ललचाएगें
गा दोगी जो गीत...
छूकर अपने अधरों से तुम,इन गीतों पावन कर दो
पार्थिव देह में भावों के सांसों का स्पंदन भर दो
वाणी में बंधकर जीते जी,ये तो तर्पण पा जायेगें
गा दोगी जो गीत मेरे तो ये अमृत बन जायेगें..
(यूं ही याद तुम्हारी याद आ गई)
Monday, August 2, 2010
जीवन
सोचा जाये तो साबत जीना औऱ भीतर बाहर से जीना यह जीने का सबसे सरल तरीका होना चाहिए,क्योंकि यही तरीका सबसे ज्यादा logocal है। पर यह बात समझ में नहीं आई कि यही तरीका सबसे ज्यादा मुश्किल क्यों है? जो तरीका बाकी सारी कायनात जीवन क्रम में कोई रूकावट नहीं डालता ......धूप बिखर जी सकती है,फुल,पेड़,आकाश ,की ओर विकास करके जी सकते है,सहज और सरल।पर उसी तरीके से जब मानव जीना चाहता है तो उसका नतीजा आमतौर पर ट्रेजडी और अकेलापन क्यों होता है?
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