Showing posts with label 'ईमान' औऱ मूल्यवानता. Show all posts
Showing posts with label 'ईमान' औऱ मूल्यवानता. Show all posts
Saturday, June 26, 2010
इस नाटक पर क्या हमें शर्म नहीं आनी चाहिए ....?
लोग उन शहीदों की याद में इकट्ठे होते हैं जो अपनी मासूमियत में एक दिन हाकिमों की गोलियों का शिकार हुए थे,लोग उन दीवारों को देख रहे हैं जिन दीवारों में उन गोलियों के निशान आज तक महफूस हैं।लोग कितनी ही देर अपनी अपनी खामोशियों में ड़ूबे रहते हैं एक मन और एक तन होकर।लगता है हर बार जैसे कि सिर्फ उन शहीदोंं की याद में ही इस तरह से सर झुकाकर खड़े ना हों बल्कि उन शहीदों की याद में इस तरह से सिर झुकाकर खड़े जो आज भी हमारी गलियों में और बाजारों में शहीद होतें हैं।कभी "ड़ायर" नाम के एक "हाकिम" ने गोलियां चलाई थी,आज "सिस्टम" नाम की एक चीज गोलियां चला रही है.यह बात अलग हैं कि इन गुमनाम गोलियों के निशान भी गुमनाम होते हैं।पर इनसे सिर्फ हमारे लोग ही नहीं हमारी जुबान के लफ्ज़ भी ज़ख्मी हो रहे हैं।','हक','सच्चाई','ईमान' औऱ मूल्यवानता जैसे शब्द आज इतने जख्मी हो गयें हैं.......इस सिस्टम के पास सिवाय मजबूर लोगों के साथ हू तू तू खेलने के आलावा क्या और भी कुछ है....मैं आपसे पूछता हूं....भोपाल गैस त्रासदी के बाद हो रहे इस नाटक पर क्या हमें शर्म नहीं आनी चाहिए ....?
Subscribe to:
Posts (Atom)