अभी अभी ......


Thursday, August 12, 2010

मां

मां संवेदना है,भावना है अहसास है
मां जीवन के फूलों में खुशबू का वास है
मां रोते हुए बच्चे का,खुशनुमा एहसास है
मां मरुस्थल में नदी या मीठा सा झरना है
मां लोरी है,गीत है,प्यारी सी थाप है
मां पूजा कीथाली है,मंत्रों का जाप है
मां आंखों का सिसकता हुआ किनारा है
मां गालों पर पप्पी है,ममता की धारा है
मां झुलसते दिनों में,कोयल की बोली है
मां मेंहदी है,कुंकुम है,सिंदूर है,रोली है
मां त्याग है,तपस्या है,सेवा है,
मां फूंक से ठंडा किया कलेवा है
मां कलम है,दवात है,स्याही है
मां परमात्मा की स्वयं की एक गवाही है
मां अनुष्ठान है,साधना है,जीवन का हवन है
मां जिंदगी मोहल्ले में ,आत्मा का भवन है
मां चूडी वाले हाथों के मजबूत कंधों का नाम है
मां काशी है,काबा है,और चारों धाम है
मां चिंता है ,याद है,हिचकी है
मां बच्चे की चोट पर सिसकी है,
मां चुल्हा,धुंआ,रोटी,और हाथों का छाला है
मां जीवन का कडबाहट में अमृत का प्याला है
मां पृथ्वी है ,जगत है,धुरी है
मां बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है
मां का महत्तव दुनिया में कम  हो नही सकता
मां जैसा दुनिया में कुछ हो नही सकता

(आदरणीय स्व.व्यासजी को विन्रम श्रृद्धांजलि सहित)

कहां पर सबेरा है.....

कदम कदम इतने छल
मिलते हैं पांव को
समझ नहीं आता
जायें किस गांव को
हाथ नहीं सूझ रहा हाथ को
उफ क्या अंधेरा है
सूर्य की कथाएं तो हम सुनते हैं
पर ना जाने कहं सबेरा है