वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी सोमवार को देश का आम बजट पेश करेंगे। पांच प्रदेशों में जल्दी ही होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए यह बजट आम आदमी को राहत देने वाला हो सकता है। उम्मीद जताई जा रही है कि इनकम टैक्स छूट की सीमा मौजूदा 1.60 लाख से बढ़ा कर 2 लाख रुपये की जा सकती है। किसानों के लिए भी कुछ राहत दी जा सकती है।
असम, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी, केरल और पश्चिम बंगाल में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होना हैं। माना जा रहा है कि बजट में नौकरीपेशा लोगों और किसानों को राहत मिलेगी। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी सोमवार को लगातार तीसरी बार बजट पेश करेंगे।
कर वसूली बढ़ी, लेकिन सामाजिक क्षेत्र में खर्च कम
लेकिन सभी की निगाहें आयकर में छूट पर हैं। यदि वित्त मंत्री इसमें रियायत दे भी देते हैं तो इससे भला सरकार का ही होगा, क्योंकि सरकार की कर वसूली लगातार बढ़ रही है और सामाजिक क्षेत्र में उसका खर्च उस अनुपात में काफी कम है।
लोगों को टैक्स अदा करने के लिए प्रेरित करने के लिए बनवाए विज्ञापन में सरकार यही कहती है कि टैक्स का इस्तेमाल उन्हीं की भलाई में होगा, पर सच कुछ और है। सरकार आम लोगों से सीधे तौर पर वसूले जा रहे कर (प्रत्यक्ष कर) की आधी रकम भी सामाजिक क्षेत्र में खर्च नहीं कर रही है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान अप्रैल से जनवरी तक 3,17,501 करोड़ रुपये का राजस्व सिर्फ प्रत्यक्ष कर के रूप में हासिल किया है। जबकि सरकार लोगों के हित में, सामाजिक क्षेत्र में सीधे तौर पर महज 1.37 लाख करोड़ रुपये (प्रत्यक्ष कर राजस्व का एक तिहाई से थोड़ा ज़्यादा) ही खर्च कर रही है। देश को कर के तौर पर मिलने वाले राजस्व का एक बड़ा हिस्सा रक्षा बजट में चला जाता है। प्रत्यक्ष कर में व्यक्तिगत आयकर, कंपनियों से मिलने वाला कर, सेक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स, फ्रिंज बेनेफिट टैक्स और बैंकिंग लेनदेन से जुड़े टैक्स शामिल होते हैं।
बीते अप्रैल से जनवरी तक इसकी वसूली छले साल की तुलना में 20 फीसदी बढ़ी है। लेकिन इस दौरान इससे कहीं ज्यादा रकम घोटाले की भेंट चढ़ने की जानकारी उजागर हुई। पिछले एक साल में सामने आए पांच बड़े घोटालों (सीडब्ल्यूजी, 2जी, खाद्यान्न, आदर्श और एस बैंड घोटाला) से ही सरकारी खजाने को 4.82 लाख करोड़ रुपये की चपत लगी है।भारत सरकार सामाजिक क्षेत्र पर मात्र 1.37 लाख करोड़ रुपये (1370 अरब रुपये) खर्च कर रही है, जो वित्त वर्ष 2010-11 के लिए तय सालाना बजट का करीब 37 फीसदी है। इसमें स्वास्थ्य पर करीब छह फीसदी और शिक्षा पर करीब 9 फीसदी खर्च किया जा रहा है।
यह अनुपात अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों की तुलना में काफी कम है। अमेरिका में सिर्फ स्वास्थ्य पर 23 फीसदी और सामाजिक सुरक्षा पर सालाना बजट का 20 फीसदी खर्च किया जाता है। वहां सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर (अनिवार्य खर्च) सालाना बजट का करीब 56 फीसदी खर्च किया जाता है, जो वहां के रक्षा बजट का करीब तीन गुना है।ब्रिटेन में 122 अरब पाउंड स्टर्लिंग सेहत और 26.2 अरब पाउंड स्टर्लिंग (करीब 1900 अरब रुपये) की रकम शिक्षा पर खर्च की जा रही है।
ब्रिटिश सरकार जनकल्याण और सुरक्षा पर करीब 75 अरब पाउंड स्टर्लिंग खर्च कर रही है। गौरतलब है कि एक पाउंड स्टर्लिंग में करीब 73 भारतीय रुपये होते हैं। तेजी से विकास कर रहा भारत का पड़ोसी चीन सामाजिक सुरक्षा पर करीब दो हजार अरब रुपये सालाना की दर से खर्च कर रहा है। चीन ने 2006 से 2010 तक कुल 9450 अरब रुपये सामाजिक सुरक्षा पर खर्च किए हैं।
बदहाल पाकिस्तान ने सामाजिक सुरक्षा और जनकल्याण के नाम पर वित्त वर्ष 2009-10 की पहली छमाही में 694 अरब पाकिस्तानी रुपये (करीब 350 अरब भारतीय रुपये) खर्च किए। इसमें गरीबी हटाने, कानून व्यवस्था, सड़कें, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे मदों में खर्च शामिल हैं।
असम, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी, केरल और पश्चिम बंगाल में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होना हैं। माना जा रहा है कि बजट में नौकरीपेशा लोगों और किसानों को राहत मिलेगी। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी सोमवार को लगातार तीसरी बार बजट पेश करेंगे।
कर वसूली बढ़ी, लेकिन सामाजिक क्षेत्र में खर्च कम
लेकिन सभी की निगाहें आयकर में छूट पर हैं। यदि वित्त मंत्री इसमें रियायत दे भी देते हैं तो इससे भला सरकार का ही होगा, क्योंकि सरकार की कर वसूली लगातार बढ़ रही है और सामाजिक क्षेत्र में उसका खर्च उस अनुपात में काफी कम है।
लोगों को टैक्स अदा करने के लिए प्रेरित करने के लिए बनवाए विज्ञापन में सरकार यही कहती है कि टैक्स का इस्तेमाल उन्हीं की भलाई में होगा, पर सच कुछ और है। सरकार आम लोगों से सीधे तौर पर वसूले जा रहे कर (प्रत्यक्ष कर) की आधी रकम भी सामाजिक क्षेत्र में खर्च नहीं कर रही है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान अप्रैल से जनवरी तक 3,17,501 करोड़ रुपये का राजस्व सिर्फ प्रत्यक्ष कर के रूप में हासिल किया है। जबकि सरकार लोगों के हित में, सामाजिक क्षेत्र में सीधे तौर पर महज 1.37 लाख करोड़ रुपये (प्रत्यक्ष कर राजस्व का एक तिहाई से थोड़ा ज़्यादा) ही खर्च कर रही है। देश को कर के तौर पर मिलने वाले राजस्व का एक बड़ा हिस्सा रक्षा बजट में चला जाता है। प्रत्यक्ष कर में व्यक्तिगत आयकर, कंपनियों से मिलने वाला कर, सेक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स, फ्रिंज बेनेफिट टैक्स और बैंकिंग लेनदेन से जुड़े टैक्स शामिल होते हैं।
बीते अप्रैल से जनवरी तक इसकी वसूली छले साल की तुलना में 20 फीसदी बढ़ी है। लेकिन इस दौरान इससे कहीं ज्यादा रकम घोटाले की भेंट चढ़ने की जानकारी उजागर हुई। पिछले एक साल में सामने आए पांच बड़े घोटालों (सीडब्ल्यूजी, 2जी, खाद्यान्न, आदर्श और एस बैंड घोटाला) से ही सरकारी खजाने को 4.82 लाख करोड़ रुपये की चपत लगी है।भारत सरकार सामाजिक क्षेत्र पर मात्र 1.37 लाख करोड़ रुपये (1370 अरब रुपये) खर्च कर रही है, जो वित्त वर्ष 2010-11 के लिए तय सालाना बजट का करीब 37 फीसदी है। इसमें स्वास्थ्य पर करीब छह फीसदी और शिक्षा पर करीब 9 फीसदी खर्च किया जा रहा है।
यह अनुपात अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों की तुलना में काफी कम है। अमेरिका में सिर्फ स्वास्थ्य पर 23 फीसदी और सामाजिक सुरक्षा पर सालाना बजट का 20 फीसदी खर्च किया जाता है। वहां सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर (अनिवार्य खर्च) सालाना बजट का करीब 56 फीसदी खर्च किया जाता है, जो वहां के रक्षा बजट का करीब तीन गुना है।ब्रिटेन में 122 अरब पाउंड स्टर्लिंग सेहत और 26.2 अरब पाउंड स्टर्लिंग (करीब 1900 अरब रुपये) की रकम शिक्षा पर खर्च की जा रही है।
ब्रिटिश सरकार जनकल्याण और सुरक्षा पर करीब 75 अरब पाउंड स्टर्लिंग खर्च कर रही है। गौरतलब है कि एक पाउंड स्टर्लिंग में करीब 73 भारतीय रुपये होते हैं। तेजी से विकास कर रहा भारत का पड़ोसी चीन सामाजिक सुरक्षा पर करीब दो हजार अरब रुपये सालाना की दर से खर्च कर रहा है। चीन ने 2006 से 2010 तक कुल 9450 अरब रुपये सामाजिक सुरक्षा पर खर्च किए हैं।
बदहाल पाकिस्तान ने सामाजिक सुरक्षा और जनकल्याण के नाम पर वित्त वर्ष 2009-10 की पहली छमाही में 694 अरब पाकिस्तानी रुपये (करीब 350 अरब भारतीय रुपये) खर्च किए। इसमें गरीबी हटाने, कानून व्यवस्था, सड़कें, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे मदों में खर्च शामिल हैं।