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Friday, June 18, 2010
क्या हमारी आंखों का पानी इतना मर गया है
भोपाल गैस त्रासदी के पर आये फैसले नें अब एक नया रूख ले लिया है न्याय से वंचित लोगों की आंखों से निकले आसुओं को फोछने के बजाये अब यह मुद्दा मतलबी और राजनीति की नाज़ाजय औलादों ने अपने कद काठी को बढ़ाने और देश दोनों बड़ी पार्टियों ने एक दूसरे के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करने के लिए भुना रहे हैं.....मैं आपसे पूछता हूं....क्या हमारी आंखों का पानी इतना मर गया है कि अब हमारे राजनेता हमारे संगी साथियों की कब्र पर खड़े होकर उनकी चिता की आग से अपने लिए रोटियां सेकें और हम कुछ ना बोले.... भोपाल गैस त्रासदी के पर आये फैसले नें अब एक नया रूख ले लिया है न्याय से वंचित लोगों की आंखों से निकले आसुओं को फोछने के बजाये अब यह मुद्दा मतलबी और राजनीति की नाज़ाजय औलादों ने अपने कद काठी को बढ़ाने और देश दोनों बड़ी पार्टियों ने एक दूसरे के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करने के लिए भुना रहे हैं.....मैं आपसे पूछता हूं....क्या हमारी आंखों का पानी इतना मर गया है कि अब हमारे राजनेता हमारे संगी साथियों की कब्र पर खड़े होकर उनकी चिता की आग से अपने लिए रोटियां सेकें और हम कुछ ना बोले.... हमारे देश मैं खराब रिजल्ट आते ही समूची शिक्षा प्रणाली को घेरने की कवायद शुरू हो जाती हें ,जबकि हम साल भर तक बच्चे की तरफ झांकते तक नहीं ,यही हाल भोपाल गैस त्रासदी का हुआ हें ,पच्चीस वर्षों से अनेकों पक्ष- विपक्ष तथा तमाम अफसरान अपने पेट मैं मलबा समेटे बैठे थे ,और कोर्ट से जजमेंट आते ही पिल पड़े ,जैसे वर्षों से बंद पड़े रोजगार की चल निकली ,जिन्होंने भुगता हें और जो भुगत रहें हैं उनका क्या ? पर इन फुरसतियों की चल निकली ,रोटी किसकी सिकेगी ये सारा देश बखूबी जानता हें ..
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