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Saturday, April 23, 2011

कायदे कानून बदले बिना सचिन को भारत रत्न देना संभव नहीं

देश के तमाम खिलाड़ी, नेता और चाहने वाले भले ही मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने की मांग कर रहे हों लेकिन संबंधित कायदे कानून बदले बिना उन्हें इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नहीं नवाजा जा सकता।देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न 1954 में शुरू किया गया था। तब से अब तक 41 व्यक्तियों को इससे विभूषित किया जा चुका है लेकिन इनमें से कोई भी खिलाड़ी नहीं है, वजह संबंधित नियम हैं।संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है, ‘‘फिलहाल वह :सचिन: इसमें :भारत रत्न देने के लिए: फिट नहीं बैठते। जब तक इन्हें :नियमों को: बदला नहीं जाता वह फिट नहीं बैठते।’’ नियमों के मुताबिक भारत रत्न, ‘‘यह सम्मान कला, साहित्य और विज्ञान के विकास में असाधारण सेवा के लिए तथा सर्वोच्च स्तर की जन सेवा की मान्यतास्वरूप दिया जाता है।’’ इसमें खेल का जिक्र कहीं नहीं है जबकि पद्म पुरस्कारों के संबंधित नियमों के तहत ‘यह पुरस्कार सभी प्रकार की गतिविधियों, क्षेत्रों जैसे कि कला, साहित्य और शिक्षा, खेल कूद, चिकित्सा, सामाजिक कार्य, विज्ञान और इंजीनियरी, सार्वजनिक मामले, सिविल सेवा, व्यापार और उद्योग आदि में विशिष्ट और असाधारण उपलब्धियों, सेवाओं के लिए प्रदान किये जाते हैं।’ इसी कारण सचिन को नियमों के तहत सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण और सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार दिया जा चुका है।संविधान विशेषज्ञ कश्यप का कहना है ,‘‘यह निर्णय सरकार को करना होगा कि क्या खेल को भारत रत्न में जोड़ा जाए। गृह मंत्रालय को इस तरह का एक प्रस्ताव मंजूरी के लिए कैबिनेट के समक्ष रखना होगा।’‘ कश्यप ने कहा, ‘‘सरकार की तरफ से गृह मंत्रालय पहल कर सकता है। अगर कोई संसद सदस्य या कोई भी नागरिक गृह मंत्रालय को पत्र लिखता है तो मंत्रालय उस पर संज्ञान ले सकता है। वैसे वह :मंत्रालय: भी स्वयं संज्ञान ले सकता है।
मंत्रिमंडल की स्वीकृति के बाद नियमों में संशोधन कर गृह मंत्रालय सचिन ही नहीं बल्कि किसी भी खिलाडी को भारत रत्न देने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। अपने प्रशंसकों के बीच ‘क्रिकेट का भगवान’ माने जाने वाले सचिन को भारत रत्न देने की मांग संसद ही नहीं विधानसभाओं में भी बार . बार उठ चुकी है। हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा में सर्वसम्मति से यह मांग की गई थी।
भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य महेंद्र सिंह धोनी, हरभजन सिंह, युवराज सिंह और वीरेंद्र सहवाग जैसे मौजूदा खिलाड़ियों सहित कई पूर्व क्रिकेटर सचिन को भारत रत्न देने की मांग कर चुके हैं।
जहां पद्म पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया काफी लंबी है वहीं भारत रत्न के लिए कोई औपचारिक सिफारिश की जरूरत नहीं है। संबंधित नियमों के मुताबिक, ‘‘भारत रत्न के लिए सिफारिश स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति को की जाती है। इसके लिए कोई औपचारिक सिफारिश की आवश्यक नहीं है।’’हालांकि केन्द्र में मंत्री रह चुके और उच्चतम न्यायालय के वरिषष्ठ अधिवक्ता जगदीप धनखड़ के मुताबिक सरकार चाहे तो बिना नियम बदले भी लोक सेवा वर्ग के तहत किसी को भारत रत्न पुरस्कार दिया जा सकता है। भारत रत्न में खिलाड़ियों का वर्ग शामिल नहीं होने की बात पर उन्होंने कहा, ‘‘यह :संशोधन: प्रक्रिया न तो जटिल है और ना ही अव्यावहारिक।’’ 
sabhar bhasha

Wednesday, April 13, 2011

विवाहः हिंदू विकृति का उत्सववादी चेहरा

विवाह उत्सव भारतीय समाज में इस हद तक विकृत हो चुका है कि उसे किसी भी तरह का बढ़ावा देना सामाजिक अपराध से कम नहीं है। विशेष कर हिंदुओं में यह विकृति सारी सीमाएं लांघ गई है। दुखद यह है कि अन्य धर्मावलंबियों में भी, जातिवाद की तरह ही, हिंदू विवाह की बुराईयां फैलती जा रही हैं। इससे भी ज्यादा अफसोस और चिंताजनक यह है कि समाज में बढ़ती शिक्षा और समृद्धि ने इस विनाशक प्रथा को कम करने की जगह इसका विस्तार ही किया है।
यह दो व्यक्तियों के मिल कर नया जीवन शुरू करने का फैसला या दो परिवारों के बीच नये संबंधों की शुरूआत का उत्सव न हो कर अनावश्यक दिखावा और क्षमता से ज्यादा खर्च के अवसर में बदल गया है। बुरी बात यह है कि यह वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष के दोहन और शोषण का एक स्वीकृत सामाजिक व्यवस्था बन गया है। यह दोहराने की जरूरत नहीं है कि हिंदू समाज में इतने बड़े पैमाने पर स्त्रियों का दमन, उत्पीडऩ, हत्याएं और आत्म हत्याएं इसी आडंबर से जुड़ी हैं। युवतियों की आकस्मिक मौत का एक बड़ा कारण दहेज से जुड़ी समस्याएं हैं जो मध्यवर्ग से निकल कर निम्र वर्ग तक पहुंच गई हैं। लड़कों का विवाह उनके परिवारों के लिए खड़े-खड़े समृद्ध बन जाने का माध्यम हो चुका है। सच तो यह है कि पिछली कम से कम डेढ़ शताब्दी से विवाह प्रसंग की खराबियों की समस्याएं भारतीय समाज को उद्वेलित किए हुए हैं और औपनिवेशिक दौर से ही भारतीय विवाह परंपरा को सुधारने की कोशिश की जाती रही है। आजादी के बाद तो सरकार ने बाकायदा दहेज लेने पर पाबंदी और लड़कियों के पैतृक संपत्ति पर अधिकार के कानून बनाए हैं पर ये मात्र कागजी बन कर रह गए हैं। आज भी शिक्षित और कमाऊ लड़कियों तक को कम दहेज के कारण प्रताडऩा सहनी पड़ती है। सच यह है कि विवाह की बुराईयों को लेकर पिछले कुछ वर्षों में न तो सरकार की ओर से और न ही समाज की ओर से कोई ऐसा प्रयत्न नजर आता है जो इसे रोकने की कोशिश हो। विवाह को लेकर किसी तरह का कोई नियंत्रण या पाबंदी कहीं भी लागू नहीं की जाती। उल्टा उदारीकरण के बाद के वर्षों में विवाह एक बड़े उद्योग में बदल गया है और इस अनुत्पादक और समाज विरोधी गतिविधि में तेजी आई है। जो काम कभी छोटे-मोटे स्तर पर होते थे वह अब बड़े व्यावसायिक आयोजन में बदल गए हैं। असल में प्रेम विवाह या युवकों को चुनाव के अधिकार से वंचित रखने का एक बड़ा कारण दहेज और विवाह से जुड़ा यह तामझाम ही है। स्वयं युवकों द्वारा इस विकृत तौर-तरीके को परंपरा और गौरव कह कर इसका आग्रह करना मूलत: दिखावे के अलावा लालच भी है।
इस विकृति को किस तरह से बढ़ावा मिल रहा है उसका उदाहरण हमारे बड़े व्यावसायिक अखबार हैं जिनमें विवाह के दिखावे और आडंबर को लगातार महिमामंडित किया जाता है। पिछले दो दशक में हिंदू परिवारों ने देश विदेश में कुछ इस तरह की शादियां की हैं जो अपने बेतहाशा और बेहूदे खर्च के लिए बहुचर्चित रही हैं। अफसोस की बात यह है कि इनकी भत्र्सना किसी भी अखबार ने गलती से भी नहीं की है।
सवाल यह है कि इस सामाजिक कुरीति के बारे में राजनेताओं का क्या कहना है? जैसा कि चलन है जबानी तौर पर इसका बस विरोध करते हैं पर आपको कभी भी ऐसा देखने को नहीं मिलेगा कि इस तरह के विवाहों का सक्रिय तौर पर कहीं भी विरोध किया जा रहा हो। संभवत: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जो नीतिगत तौर पर विवाह में सादगी की हिमायत करता है। उससे इसकी अपेक्षा इसलिए भी की जाती है कि यह स्वयं को हिंदुओं की सबसे बड़ी हिमायती बतलाती है। ये पार्टियां असल में किसी संप्रदाय के राजनीतिक हितों का उस तरह से पक्ष नहीं लेतीं जिस तरह की वे बातें करती हैं बल्कि इसके बहाने संप्रदाय विशेष का एक वर्ग सत्ता हथियाने के लिए इसे आड़ के रूप में इस्तेमाल करता है। साफ है कि हिंदुओं या उस तरह से किसी भी संप्रदाय की हिमायती पार्टी का एक मात्र काम उसके राजनीतिक हितों की ही रक्षा न तो होना चाहिए और न ही हो सकता है। उसके सामाजिक उत्थान का काम भी तो उसी पार्टी का है या होना चाहिए। पर यथार्थ में क्या होता है? इसका सबसे ताजा उदाहरण भारतीय जनता पार्टी है।
उसके अध्यक्ष नितिन गडकरी के बेटे का विवाह है, दिसंबर के पहले सप्ताह में हुआ था। उस विवाह में क्या हुआ, यह देखना जरूरी है।
यह विवाह उसी विदर्भ (नागपुर) में हुआ जहां कि पिछले कुछ वर्षों में हजारों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सन 1997 से अब तक अकेले महाराष्ट्र में 44,276 किसानों ने आत्महत्याएं कीं। सिर्फ 2009 में ही इस राज्य में आत्महत्या करनेवाले किसानों की संख्या 2,872 थी। इन में से अधिकांश आत्महत्याएं विदर्भ क्षेत्र में ही हुईं। असमानता और गरीबी का आलम यह है कि इस क्षेत्र में कुपोषण और भुखमरी इतनी ज्यादा है कि उसकी तुलना सिर्फ मध्य प्रदेश से ही की जा सकती है। देखने की बात यह है कि यह उसी महाराष्ट्र का हिस्सा है जो भारत के समृद्धतम राज्यों में से है। इस असमानता ने यहां बेचैनी फैलाई हुई है और आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में माओवादी आंदोलन सक्रिय है। पर इससे नेताओं और राष्ट्रवाद की दुहाई देनेवाली पार्टी का क्या लेना-देना। शादी तो शादी की तरह ही होगी ना। आखिर हिंदू परंपरा और संस्कृति का मसला है। इस लिए भाजपा के अध्यक्ष महोदय श्रीमान नितिन गडकरी जी के सुपुत्र निखिल के विवाहोत्सव के निमंत्रण पत्रों की कीमत ही एक करोड़ के आसपास थी। दावत तीन हिस्सों में हुई। पहली परिवार के निकट के लोगों के लिए थी, जिसमें दो हजार लोग थे, विशिष्ट लोगों के लिए हुई दूसरी दावत में देश भर से 15 हजार लोगों के शामिल होने का अनुमान रहा। 4 दिसंबर को जनता व पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए हुए तीसरे आयोजन में पूरा शहर ही आमंत्रित था। एक अखबार के अनुसार इसके लिए एक लाख तो निमंत्रण पत्र ही भेजे गए थे।
इस विवाह पर कितना खर्च हुआ होगा इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 3 दिसंबर को हुई सिर्फ विशिष्ट लोगों की पार्टी पर ही पांच करोड़ खर्च होने का अनुमान है। इसमें 70 किस्म के व्यंजन परोसे गए थे। हेमा मालिनी जैसे नौ सौ लोगों को देश भर से आने-जाने के लिए हवाई टिकट दिए गए थे। दिल्ली में कई पत्रकारों को भी मुफ्त के टिकट मिले (जो भी जानते हैं कि उनका जन्म सिद्ध अधिकार है)। सारा महाराष्ट्र और विशेषकर विदर्भ बिजली की कमी से त्राहि-त्राहि कर रहा है। किसानों को सिंचाई के लिए बिजली नहीं मिल पा रही है और लोगों को रोशनी करने के लिए पर चार दिन तक नागपुर शहर का जर्रा-जर्रा विवाह की खुशी में जगमगाता रहा (किस के हिस्से की बिजली से, आप समझ ही गए होंगे)। कम से कम अनुमान लगाएं तो भी इस पर दस करोड़ रुपये तो खर्च हुए ही होंगे। मोटे अनुमान से भी इन पार्टियों में 25 करोड़ के आसपास तो खर्च किया ही गया होगा। देखने की बात यह है कि गडकरी उन उद्योगपतियों में से हैं जिनका उत्थान उदारीकरण की लहर में पिछले दो दशकों में ही हुआ है। (अगर सरकार कह रही है कि अर्थिक वृद्धि की दर दो अंकों के निकट पहुंचनेवाली है तो कोई गलत तो है नहीं! इससे कोई और बड़ा प्रमाण हो सकता है।)। पिछले दशक में हुई एक लाख आत्म हत्याओं की बात छोडिय़े, विवाह की यह भव्यता और कितने लोगों के लिए प्रेरणा का कारण बनेगी, उसका अनुमान लगाईये। और वह प्रेरणा कितनी और मासूम युवतियों की हत्या करवाएगी और कितनों को आत्म हत्या के कगार पर ले जाएगी जरा उसकी सोचिए!
इस खर्च का एक और पहलू भी है। इसमें भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री और मंत्रीगणों के अलावा केंद्र के कई नेता भी शामिल हुए। ये नेता वहां किस तरह पहुंचे यह जानना भी कम मजेदार नहीं है। अरुण जेटली और लालकृष्ण अडवाणी चार्टर्ड एयर बस 320 से पहुंचे, रमेश पोखरियाल निशंक, शिवराज सिंह चौहान, रमण सिंह, नरेंद्र मोदी, यदुरप्पा, सुखबीर सिंह बादल विशेष विमानों से पहुंचे। इन में से कई अपने उदार उद्योगपति मित्रों के विमानों में आये (राजनेताओं और उद्योगपतियों के बीच के भाई चारे के, राडिया टेपों के बहाने, सामने आए आदर्श किस्सों से आज भला कौन अपरिचित है!) जैसे कि नरेंद्र मोदी अडाणी समूह के निजी जेट से पहुंचे तो येदुरप्पा बंगलुरू की एक कंपनी के जहाज में। इनके अलावा अनिल अंबानी, कुमार मंगलम बिड़ला, वी. धूत, विजय माल्या आदि उद्योगपतियों ने अपने निजी विमानों का इस्तेमाल किया। इसी तरह राज ठाकरे, उद्धव ठाकरे, वरुण गांधी आदि भी पहुंचे। कुल मिला कर उस दिन नागपुर के हवाई अड्डे पर 30 से ज्यादा निजी और चार्टर्ड जहाज उतरे जिनमें से, जाहिर है कि वे मेहमान उतरे जो निखिल के विवाह के अवसर पर हो रहे भोज में शामिल होने आए थे। अगर गडकरी ने अपने बेटे के विवाह में करोड़ों खर्च किए तो क्या ऐरे-गैरे फटीचर चले आते! उन्होंने भी अवसरानुकूल रकम लगाई थी। वह क्या हो सकती है इसका अनुमान अंग्रेजी पत्रिका आउटलुक के 20 दिसंबर के अंक में छपे जहाजों को किराए पर लेने की दरों से कुछ हद तक लगाया जा सकता है। इसके अनुसार सामान्यत: आठ-नौ सीटों वाले जहाजों का किराया प्रति घंटे दो से पौने तीन लाख तक होता है। दिल्ली से अगर नौ सीटर चैलेंजर नामक जहाज को लिया जाए और इसके आने जाने के समय व इंतजार के समय को जोड़ा जाए – छह घंटा उड़ान और चार घंटा प्रतीक्षा – तो कुल किराया 30 लाख से ऊपर बैठता है। बोईंग 320 का क्या किराया रहा होगा, अनुमान लगाना कठिन है, क्योंकि यह बड़ा विमान होता है और इसके बारे में पत्रिका के लेख में कुछ नहीं कहा गया है।
देखने की बात यह है कि नागपुर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी मुख्यालय है जो हिंदुओं का स्वयं को सबसे बड़ा ठेकेदार बतलाता है पर लगता है उसका एजेंडा हिंदू समाज मेें किसी तरह का सुधार न हो कर सिर्फ उसकी रूढि़वादिता को भुनाना और हिंदुओं में असुरक्षा पैदा कर देश के विभिन्न समुदायों के प्रति घृणा फैलना है।
यह अजीब संयोग है कि गडकरी के लड़के के विवाह के कुछ ही दिन बाद वाराणसी में गंगा की आरती के दौरान, एक धमाका हुआ जिसमें एक मौत हुई और कई घायल हुए। देखने की बात यह थी कि उसी घटना स्थल पर एक डेढ़ वर्ष की लावारिस बच्ची मिली जो बम धमाके से ज्यादा अपने मां-बाप के खो जाने से दहशत में थी। पुलिस आतंकवादियों का सुराग लगाने में अभी तक तो कामयाब नहीं हो पाई है, पर हां उसने बच्ची के मां-बाप का पता लगाने में जरूर सफलता हासिल कर ली है। लड़की हिंदू ही नहीं बल्कि ब्राह्मण परिवार की थी। उसे वहां मां-बाप जान-बूझ कर छोड़ गए थे। क्यों? इसका जवाब गडकरी, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक-दूसरे से पूछना चाहिए। संभव है वे किसी सही नतीजे पर पहुंच सकें।
साभार..समयातंर

Saturday, April 9, 2011

जंतर मंतर पर हैं कई अन्ना

दिल्ली के जंतर मंतर पर जाने से लगता है कि देश की हर सड़क अन्ना हज़ारे के धरने के पंडाल पर ख़त्म हो रही हो. लेकिन जंतर मंतर पर अन्य मसलों पर प्रदर्शन कर रहे लोगों के दरवाज़े पर ये सड़क ज़रा भी नहीं थमती.
आमरण अनशन पर बैठे अन्ना हज़ारे के स्वास्थ्य पर हर पल नज़र रखी जा रही हैं. सरकारी डॉक्टरों से ले कर निजी डॉक्टरों की एक फ़ौज उनके चारों तरफ़ खड़ी हैं.
अन्ना हज़ारे के पंडाल से बमुश्किल सौ मीटर की दूरी पर बैठे हर्ष कुमार भी अन्ना की तरह ही पांच तारीख़ से आमरण अनशन कर रहे हैं लेकिन उनकी सुध कोई नहीं ले रहा.

अकेले लड़ रहे है

हर्ष कुमार का कहना है, "बुधवार शाम को डॉक्टर ने मेरी जांच की थी उसके बाद से कोई देखने नहीं आया न कोई सरकार की तरफ से किसी किस्म की कोई प्रतिक्रिया आई है."

हर्ष कुमार एक पेड़ के नीचे बिना किसी पंखे के तपती ज़मीन पर दरी पर लेटे हुए अब अपने मित्रों और सलाहकारों के आने का इंतज़ार कर रहे हैं ताकि आगे की रणनीति बनाएं. लेकिन हर्ष कुमार कतई नाउम्मीद नहीं हैं उन्हें लगता हैं कि एक दिन अन्ना की तरह उनके साथ भी हजारों लोग होंगें और उनकी बात भी सुनी जायेगी.हर्ष कुमार से पचास फीट की दूरी पर मछिंदर नाथ सूर्यवंशी अखिल भारतीय जूता मारो आंदोलन के झंडे तले पिछले चार साल से जंतर मंतर पर बैठे हैं. मछिंदर नाथ के हाल तो हर्ष कुमार से भी खराब हैं. वो ज़मीन पर ऊपर बिना किसी तम्बू कनात के पेपर पर लेटे हुए हैं.
सूर्यवंशी का माना है कि भूख हड़ताल से कुछ खास हासिल नहीं होने वाला और रिश्वत की जगह जूता मारना ही भ्रष्टाचार का हल है लोकपाल बिल नहीं.

सुध नहीं ली

सूर्यवंशी कहते हैं, "पिछले चार साल में यहाँ जंतर मंतर पर जाने कितने लोगों ने भूख हड़ताल की, कितने लोगों ने जान दे दी, कितने धरने प्रदर्शन आए और चले गए लेकिन कुछ नहीं हुआ.''
जंतर मंतर के एक दूसरे कोने पर दिल्ली नगरपालिका दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी संघ भी धरने पर बैठे हैं लेकिन यहाँ भी कष्ट यही है की न सरकार न मीडिया कोई उनकी बात नहीं सुन रहा.
दिल्ली के जंतर मंतर की तुलना लंदन के हाइड पार्क और न्यू यॉर्क के टाइम स्क्वायर से की जाती है. बरसों से राजनितिक, ग़ैर राजनीतिक संगठन और आम लोग यहाँ आकर धरने प्रदर्शन कर रहे हैं.
बरसों पहले राष्ट्रपति भवन और संसद से कुछ ही दूरी पर दिल्ली का बोट क्लब मैदान प्रदर्शनों की स्थायी जगह थी. लेकिन कुछ बड़ी रैलियों में हुई हिंसा और सुरक्षा कारणों से प्रदर्शनों के अधिकृत रूप से जंतर मंतर के पास सड़क किनारे के फुटपाथ प्रदर्शनों और धरनों के लिए अधिकृत कर दिए गए
सौजन्य....bbc

Friday, April 8, 2011

देश में अन्नागिरी

 भ्रष्टाचार पर शिकंजा कसने के लिए सख्त कानून बनाने और उसमें जनता की भागीदारी की मांग कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता ने यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी की अनशन तोड़ने की मांग को ठुकरा दिया है। अन्ना ने कहा है कि सोनिया गांधी को पहले अपनी सरकार बचानी चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हजारे के मुद्दों से सहमति जताते हुए उनसे अनशन समाप्त करने की अपील की थी। सोनिया ने कहा था, 'हजारे ने जो मुद्दे उठाए हैं, वे जनता की गंभीर चिंता से जुड़े हुए हैं। इस मामले में कारगर कानून होना चाहिए। मुझे भरोसा है कि अन्ना हजारे के विचारों पर सरकार पूरा ध्यान देगी। सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार से तत्काल लड़ने की जरूरत पर दो राय नहीं हो सकती।'

वहीं, केंद्र में मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी की लोकसभा में नेता सुषमा स्वराज ने ट्विटर पर लिखे अपने संदेश में कहा है कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए हमें कड़े कानून की जरूरत है। इस बीच, अन्ना हजारे के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच अन्ना की मांग पर विचार करने के लिए आज दूसरे दिन बैठक होगी। आज अन्ना हजारे के आमरण अनशन का चौथा दिन है। अन्ना मंगलवार से भूख हड़ताल पर हैं। पूरे देश में अन्ना के समर्थन और भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज़ उठ रही है। बड़ी संख्या में लोग दिल्ली के जंतर मंतर और मुंबई के आज़ाद मैदान समेत देश के कई शहरों में अनशन पर बैठे हुए हैं।

जस्टिस वर्मा और जस्टिस हेगड़े के नाम प्रस्तावित करेंगे
अन्ना हजारे के समर्थक अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को जानकारी दी कि जस्टिस जेएस वर्मा और जस्टिस संतोष हेगड़े के नाम ड्राफ्ट समिति के अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित करने के लिए अन्ना हजारे प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखने जा रहे हैं। अरविंद ने मीडिया में आ रही उन खबरों को गलत बताया है जिसमें कहा गया है कि अन्ना के समर्थकों में फूट पड़ गई है। किरण बेदी को लेकर मीडिया में उठे सवाल पर उन्होंने कहा कि किरण बेदी दो दिनों से बीमार होने के चलते अपने घर पर थीं और आज वे जंतर मंतर पहुंच चुकी हैं और मंच पर मौजूद हैं। अरविंद ने उन आरोपों का भी खंडन किया है जिसमें कहा गया है कि वे खुद या स्वामी अग्निवेश लोकपाल बिल को तैयार करने वाली प्रस्तावित ड्राफ्ट समिति के अध्यक्ष बनना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें किसी पद की चाहत नहीं है। 

सरकारी अड़ी, शाम छह बजे बैठक के लिए बुलाया  
केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा है कि अगर अन्ना समिति के चेयरमैन बनेंगे तो सरकारी अधिकारी पैनल में शामिल होंगे। सिब्बल ने ड्राफ्ट समिति बनाने के लिए अधिसूचना जारी करने से मना कर दिया है। कपिल सिब्बल ने स्वामी अग्निवेश को तीसरे दौर की बैठक के लिए आज शाम छह बजे बुलाया है। कपिल सिब्बल ने स्वामी अग्निवेश से आज बात की है। उन्होंने कहा कि आधिकारिक चिट्ठी जारी कर सकता हूं। 

अन्ना की सेहत
डॉक्टरों ने शुक्रवार की सुबह अन्ना हजारे की मेडिकल जांच की है। डॉक्टरों का कहना है कि पिछले चार दिनों में उनका करीब डेढ़ किलो वजन कम हुआ है और उनका रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) भी बढ़ गया है।

योग गुरु रामदेव भी समर्थन में पहुंचे
योग गुरु बाबा रामदेव शुक्रवार की सुबह अन्ना हजारे के समर्थन में जंतर मंतर पहुंच चुके हैं। फिल्म स्टार अनुपम खेर और फिल्म निर्माता प्रीतीश नंदी ने भी जंतर मंतर पर भ्रष्टाचार के विरोध में आम लोगों के अलावा फिल्म और क्रिकेट की दुनिया की बड़ी शख्सियतों को आगे आकर अभियान का समर्थन करने की अपील की है। 
अमेरिका में दांडी मार्च
भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज़ सिर्फ देश तक ही सीमित नहीं है। लॉस एंजेल्स में रह रहे भारतीय लोग अन्ना हजारे के समर्थन और भ्रष्टाचार के विरोध में एक दिन उपवास रख रहे हैं। इस उपवास का आयोजन अप्रवासी भारतीयों के उसी समूह ने किया है जिसने कुछ दिनों पहले दांडी मार्च दो का आयोजन किया था। इस मार्च के दौरान अमेरिका में 240 मील लंबी यात्रा की गई थी। उपवास और दांडी मार्च के आयोजकों में से एक शशिधर कलागरा ने कहा कि जंतर मंतर पर अन्ना हजारे के अनशन के समर्थन में अमेरिका में रह रहे भारतीय बड़ी तादाद में आगे आए हैं।   

भ्रष्टतंत्र के विरुद्ध जनतंत्र
सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल और अन्ना हजारे के प्रतिनिधि के तौर पर अरविंद केजरीवाल और स्वामी अग्निवेश के बीच गुरुवार को दो दौर की बातचीत में कुछ मुद्दों पर सहमति बन गई है, जबकि कुछ मुद्दों पर बात नहीं बनी है। आज एक बार फिर से बातचीत होगी। आइए, देखें किन मुद्दों पर सहमति बन गई है और किन पर मतभेद बना हुआ है।
सहमति:
1. अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों की मांग थी कि बिल के लिए सरकार से बाहर के लोगों के साथ मिलकर सरकार संयुक्त समिति गठित करे। सरकार इसके लिए सहमत है। प्रस्तावित समिति में पांच सदस्य सरकार की तरफ से पांच गैर-सरकारी होंगे।

2. हजारे की मांग है कि लोकपाल से जुड़ा बिल पहले से ज्यादा सख्त हो, इस बात पर भी सरकार सहमत है।

3. हजारे चाहते हैं कि बिल को जल्द से जल्द कानून की शक्ल दी जाए। सरकार लोकपाल बिल को संसद के मॉनसून सत्र में लाने को तैयार है।

मतभेद:
1. सरकार पहले समिति का अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री प्रणव मुखर्जी या किसी और वरिष्ठ मंत्री को बनाने की बात कर रही थी। मगर फिर वह किसी रिटायर्ड जज पर सहमत हो गई है। लेकिन हजारे के समर्थक अध्यक्ष पद पर किसी गैर सरकारी व्यक्ति को चाहते हैं। हालांकि हजारे ने इस बात का खंडन किया कि वे समिति का अध्यक्ष बनना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वे सलाहकार या सदस्य की हैसियत से समिति में रहेंगे।

2. हजारे समर्थक समिति को आधिकारिक स्वरूप देने की मांग कर रहे हैं। इसके लिए सरकारी अधिसूचना जारी करने की मांग की गई है। लेकिन समिति गठन करने की अधिसूचना जारी करने को राजी नहीं हैं। केजरीवाल का कहना है ‘क्या गारंटी है, सरकार केवल समिति गठन की घोषणा कर दे और कोई औपचारिक अधिसूचना जारी नहीं करे। वे हमें बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।’ सरकारी सूत्रों का कहना है कि समिति के मसौदे को आधिकारिक रूप से फाइनल कैबिनेट ही कर सकती है। उसके बाद इसे संसद को पास करना है। कानून बनाने का काम गैर सरकारी लोगों को सौंपने की न तो संविधान इजाजत देता है और न ही ऐसी किसी सरकार के समय परंपरा रही हैं।

सोशल नेटवर्क पर भी मुहिम
अन्ना के साथ आमरण अनशन करने वालों की संख्या दो सौ से अधिक हो चुकी है। वहीं दूसरी ओर बेंगलुरु, चंडीगढ़, लखनऊ, पुणे, पटना, और मुंबई सहित देश के कई शहरों में उनके समर्थन में लोग आगे आ रहे हैं। इंटरनेट पर ट्विटर और फेसबुक सहित कई सोशल नेटवर्क पर भी अन्ना हज़ारे के आंदोलन को मिल रहा समर्थन व्यापक रूप लेता जा रहा है।

कई शहरों में समर्थन
दिल्ली: स्कूली बच्चे भी हजारे के समर्थन में जंतर मंतर पहुंचे।

रांची: 1970 के दशक के जेपी आंदोलन में शामिल हुए लोगों ने उपवास रखा।

लखनऊ: वी द पीपल ने प्रभावी लोकपाल बिल के समर्थन में प्रदर्शन किया।

भोपाल: गैस पीड़ितों का संगठन शुक्रवार से उपवास आरंभ करेगा।

कोलकाता: गांधी शांति प्रतिष्ठान और अन्य सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि सोमवार को 12 घंटे का उपवास करेंगे।

हैदराबाद: लोकसत्ता पार्टी के कार्यकर्ता शुक्रवार और शनिवार को रैली निकालेंगे और सत्याग्रह करेंगे

Friday, April 1, 2011

पाकिस्तना के नकली नोट रिजर्व बैंक में


श के रिज़र्व बैंक के वाल्ट पर सीबीआई ने छापा डाला. उसे वहां पांच सौ और हज़ार रुपये के नक़ली नोट मिले. वरिष्ठ अधिकारियों से सीबीआई ने पूछताछ भी की. दरअसल सीबीआई ने नेपाल-भारत सीमा के साठ से सत्तर विभिन्न बैंकों की शाखाओं पर छापा डाला था, जहां से नक़ली नोटों का कारोबार चल रहा था. इन बैंकों के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा कि उन्हें ये नक़ली नोट भारत के रिजर्व बैंक से मिल रहे हैं. इस पूरी घटना को भारत सरकार ने देश से और देश की संसद से छुपा लिया. या शायद सीबीआई ने भारत सरकार को इस घटना के बारे में कुछ बताया ही नहीं. देश अंधेरे में और देश को तबाह करने वाले रोशनी में हैं. आइए, आपको
आज़ाद भारत के सबसे बड़े आपराधिक षड्‌यंत्र के बारे में बताते हैं, जिसे हमने पांच महीने की तलाश के बाद आपके सामने रखने का फ़ैसला किया है. कहानी है रिज़र्व बैंक के माध्यम से देश के अपराधियों द्वारा नक़ली नोटों का कारोबार करने की.
नक़ली नोटों के कारोबार ने देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह अपने जाल में जकड़ लिया है. आम जनता के  हाथों में नक़ली नोट हैं, पर उसे ख़बर तक नहीं है. बैंक में नक़ली नोट मिल रहे हैं, एटीएम नक़ली नोट उगल रहे हैं. असली-नक़ली नोट पहचानने वाली मशीन नक़ली नोट को असली बता रही है. इस देश में क्या हो रहा है, यह समझ के बाहर है. चौथी दुनिया की तहक़ीक़ात से यह पता चला है कि जो कंपनी भारत के  लिए करेंसी छापती रही, वही 500 और 1000 के  नक़ली नोट भी छाप रही है. हमारी तहक़ीक़ात से यह अंदेशा होता है कि देश की सरकार और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया जाने-अनजाने में नोट छापने वाली विदेशी कंपनी के पार्टनर बन चुके हैं. अब सवाल यही है कि इस ख़तरनाक साज़िश पर देश की सरकार और एजेंसियां क्यों चुप हैं?
एक जानकारी जो पूरे देश से छुपा ली गई, अगस्त 2010 में सीबीआई की टीम ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के वाल्ट में छापा मारा. सीबीआई के अधिकारियों का दिमाग़ उस समय सन्न रह गया, जब उन्हें पता चला कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के  ख़ज़ाने में नक़ली नोट हैं. रिज़र्व बैंक से मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिसे पाकिस्तान की खु़फिया एजेंसी नेपाल के  रास्ते भारत भेज रही है. सवाल यह है कि भारत के रिजर्व बैंक में नक़ली नोट कहां से आए? क्या आईएसआई की पहुंच रिज़र्व बैंक की तिजोरी तक है या फिर कोई बहुत ही भयंकर साज़िश है, जो हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को खोखला कर चुकी है. सीबीआई इस सनसनीखेज मामले की तहक़ीक़ात कर रही है. छह बैंक कर्मचारियों से सीबीआई ने पूछताछ भी की है. इतने महीने बीत जाने के बावजूद किसी को यह पता नहीं है कि जांच में क्या निकला? सीबीआई और वित्त मंत्रालय को देश को बताना चाहिए कि बैंक अधिकारियों ने जांच के दौरान क्या कहा? नक़ली नोटों के इस ख़तरनाक खेल पर सरकार, संसद और जांच एजेंसियां क्यों चुप है तथा संसद अंधेरे में क्यों है?
अब सवाल यह है कि सीबीआई को मुंबई के रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया में छापा मारने की ज़रूरत क्यों पड़ी? रिजर्व बैंक से पहले नेपाल बॉर्डर से सटे बिहार और उत्तर प्रदेश के क़रीब 70-80 बैंकों में छापा पड़ा. इन बैंकों में इसलिए छापा पड़ा, क्योंकि जांच एजेंसियों को ख़बर मिली है कि पाकिस्तान की खु़फ़िया एजेंसी आईएसआई नेपाल के रास्ते भारत में नक़ली नोट भेज रही है. बॉर्डर के इलाक़े के बैंकों में नक़ली नोटों का लेन-देन हो रहा है. आईएसआई के रैकेट के ज़रिए 500 रुपये के नोट 250 रुपये में बेचे जा रहे हैं. छापे के दौरान इन बैंकों में असली नोट भी मिले और नक़ली नोट भी. जांच एजेंसियों को लगा कि नक़ली नोट नेपाल के ज़रिए बैंक तक पहुंचे हैं, लेकिन जब पूछताछ हुई तो सीबीआई के होश उड़ गए. कुछ बैंक अधिकारियों की पकड़-धकड़ हुई. ये बैंक अधिकारी रोने लगे, अपने बच्चों की कसमें खाने लगे. उन लोगों ने बताया कि उन्हें नक़ली नोटों के बारे में कोई जानकारी नहीं, क्योंकि ये नोट रिजर्व बैंक से आए हैं. यह किसी एक बैंक की कहानी होती तो इसे नकारा भी जा सकता था, लेकिन हर जगह यही पैटर्न मिला. यहां से मिली जानकारी के बाद ही सीबीआई ने फ़ैसला लिया कि अगर नक़ली नोट रिजर्व बैंक से आ रहे हैं तो वहीं जाकर देखा जाए कि मामला क्या है. सीबीआई ऱिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पहुंची, यहां उसे नक़ली नोट मिले. हैरानी की बात यह है कि रिज़र्व बैंक में मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिन्हें आईएसआई नेपाल के ज़रिए भारत भेजती है.
रिज़र्व बैंक आफ इंडिया में नक़ली नोट कहां से आए, इस गुत्थी को समझने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश में नक़ली नोटों के मामले को समझना ज़रूरी है. दरअसल हुआ यह कि आईएसआई की गतिविधियों की वजह से यहां आएदिन नक़ली नोट पकड़े जाते हैं. मामला अदालत पहुंचता है. बहुत सारे केसों में वकीलों ने अनजाने में जज के सामने यह दलील दी कि पहले यह तो तय हो जाए कि ये नोट नक़ली हैं. इन वकीलों को शायद जाली नोट के कारोबार के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं था, स़िर्फ कोर्ट से व़क्त लेने के लिए उन्होंने यह दलील दी थी. कोर्ट ने जब्त हुए नोटों को जांच के लिए सरकारी लैब भेज दिया, ताकि यह तय हो सके  कि ज़ब्त किए गए नोट नक़ली हैं. रिपोर्ट आती है कि नोट असली हैं. मतलब यह कि असली और नक़ली नोटों के कागज, इंक, छपाई और सुरक्षा चिन्ह सब एक जैसे हैं. जांच एजेंसियों के होश उड़ गए कि अगर ये नोट असली हैं तो फिर 500 का नोट 250 में क्यों बिक रहा है. उन्हें तसल्ली नहीं हुई. फिर इन्हीं नोटों को टोक्यो और हांगकांग की लैब में भेजा गया. वहां से भी रिपोर्ट आई कि ये नोट असली हैं. फिर इन्हें अमेरिका भेजा गया. नक़ली नोट कितने असली हैं, इसका पता तब चला, जब अमेरिका की एक लैब ने यह कहा कि ये नोट नक़ली हैं. लैब ने यह भी कहा कि दोनों में इतनी समानताएं हैं कि जिन्हें पकड़ना मुश्किल है और जो विषमताएं हैं, वे भी जानबूझ कर डाली गई हैं और नोट बनाने वाली कोई बेहतरीन कंपनी ही ऐसे नोट बना सकती है. अमेरिका की लैब ने जांच एजेंसियों को पूरा प्रूव दे दिया और तरीक़ा बताया कि कैसे नक़ली नोटों को पहचाना जा सकता है. इस लैब ने बताया कि इन नक़ली नोटों में एक छोटी सी जगह है, जहां छेड़छाड़ हुई है. इसके बाद ही नेपाल बॉर्डर से सटे बैंकों में छापेमारी का सिलसिला शुरू हुआ. नक़ली नोटों की पहचान हो गई, लेकिन एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि नेपाल से आने वाले 500 एवं 1000 के नोट और रिज़र्व बैंक में मिलने वाले नक़ली नोट एक ही तरह के कैसे हैं. जिस नक़ली नोट को आईएसआई भेज रही है, वही नोट रिजर्व बैंक में कैसे आया. दोनों जगह पकड़े गए नक़ली नोटों के काग़ज़, इंक और छपाई एक जैसी क्यों है. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भारत के 500 और 1000 के जो नोट हैं, उनकी क्वालिटी ऐसी है, जिसे आसानी से नहीं बनाया जा सकता है और पाकिस्तान के पास वह टेक्नोलॉजी है ही नहीं. इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि जहां से ये नक़ली नोट आईएसआई को मिल रहे हैं, वहीं से रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया को भी सप्लाई हो रहे हैं. अब दो ही बातें हो सकती हैं. यह जांच एजेंसियों को तय करना है कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों की मिलीभगत से नक़ली नोट आया या फिर हमारी अर्थव्यवस्था ही अंतरराष्ट्रीय मा़फ़िया गैंग की साज़िश का शिकार हो गई है. अब सवाल उठता है कि ये नक़ली नोट छापता कौन है.
हमारी तहक़ीक़ात डे ला रू नाम की कंपनी तक पहुंच गई. जो जानकारी हासिल हुई, उससे यह साबित होता है कि नक़ली नोटों के कारोबार की जड़ में यही कंपनी है. डे ला रू कंपनी का सबसे बड़ा करार रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ था, जिसे यह स्पेशल वॉटरमार्क वाला बैंक नोट पेपर सप्लाई करती रही है. पिछले कुछ समय से इस कंपनी में भूचाल आया हुआ है. जब रिजर्व बैंक में छापा पड़ा तो डे ला रू के शेयर लुढ़क गए. यूरोप में ख़राब करेंसी नोटों की सप्लाई का मामला छा गया. इस कंपनी ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को कुछ ऐसे नोट दे दिए, जो असली नहीं थे. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की टीम इंग्लैंड गई, उसने डे ला रू कंपनी के अधिकारियों से बातचीत की. नतीजा यह हुआ कि कंपनी ने हम्प्शायर की अपनी यूनिट में उत्पादन और आगे की शिपमेंट बंद कर दी. डे ला रू कंपनी के अधिकारियों ने भरोसा दिलाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने यह कहा कि कंपनी से जुड़ी कई गंभीर चिंताएं हैं. अंग्रेजी में कहें तो सीरियस कंसर्नस. टीम वापस भारत आ गई.
डे ला रू कंपनी की 25 फीसदी कमाई भारत से होती है. इस ख़बर के आते ही डे ला रू कंपनी के शेयर धराशायी हो गए. यूरोप में हंगामा मच गया, लेकिन हिंदुस्तान में न वित्त मंत्री ने कुछ कहा, न ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कोई बयान दिया. रिज़र्व बैंक के प्रतिनिधियों ने जो चिंताएं बताईं, वे चिंताएं कैसी हैं. इन चिंताओं की गंभीरता कितनी है. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ डील बचाने के लिए कंपनी ने माना कि भारत के रिज़र्व बैंक को दिए जा रहे करेंसी पेपर के उत्पादन में जो ग़लतियां हुईं, वे गंभीर हैं. बाद में कंपनी के चीफ एक्जीक्यूटिव जेम्स हसी को 13 अगस्त, 2010 को इस्ती़फा देना पड़ा. ये ग़लतियां क्या हैं, सरकार चुप क्यों है, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया क्यों ख़ामोश है. मज़ेदार बात यह है कि कंपनी के अंदर इस बात को लेकर जांच चल रही थी और एक हमारी संसद है, जिसे कुछ पता नहीं है.
5 जनवरी, 2011 को यह ख़बर आई कि भारत सरकार ने डे ला रू के साथ अपने संबंध ख़त्म कर लिए. पता यह चला कि 16,000 टन करेंसी पेपर के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू की चार प्रतियोगी कंपनियों को ठेका दे दिया. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू को इस टेंडर में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित भी नहीं किया. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और भारत सरकार ने इतना बड़ा फै़सला क्यों लिया. इस फै़सले के पीछे तर्क क्या है. सरकार ने संसद को भरोसे में क्यों नहीं लिया. 28 जनवरी को डे ला रू कंपनी के  टिम कोबोल्ड ने यह भी कहा कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के  साथ उनकी बातचीत चल रही है, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि डे ला रू का अब आगे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ कोई समझौता होगा या नहीं. इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी डे ला रू से कौन बात कर रहा है और क्यों बात कर रहा है. मज़ेदार बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ख़ामोश रहा.
इस तहक़ीक़ात के दौरान एक सनसनीखेज सच सामने आया. डे ला रू कैश सिस्टम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को 2005 में सरकार ने दफ्तर खोलने की अनुमति दी. यह कंपनी करेंसी पेपर के अलावा पासपोर्ट, हाई सिक्योरिटी पेपर, सिक्योरिटी प्रिंट, होलोग्राम और कैश प्रोसेसिंग सोल्यूशन में डील करती है. यह भारत में असली और नक़ली नोटों की पहचान करने वाली मशीन भी बेचती है. मतलब यह है कि यही कंपनी नक़ली नोट भारत भेजती है और यही कंपनी नक़ली नोटों की जांच करने वाली मशीन भी लगाती है. शायद यही वजह है कि देश में नक़ली नोट भी मशीन में असली नज़र आते हैं. इस मशीन के सॉफ्टवेयर की अभी तक जांच नहीं की गई है, किसके इशारे पर और क्यों? जांच एजेंसियों को अविलंब ऐसी मशीनों को जब्त करना चाहिए, जो नक़ली नोटों को असली बताती हैं. सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि डे ला रू कंपनी के रिश्ते किन-किन आर्थिक संस्थानों से हैं. नोटों की जांच करने वाली मशीन की सप्लाई कहां-कहां हुई है.
हमारी जांच टीम को एक सूत्र ने बताया कि डे ला रू कंपनी का मालिक इटालियन मा़िफया के साथ मिलकर भारत के नक़ली नोटों का रैकेट चला रहा है. पाकिस्तान में आईएसआई या आतंकवादियों के पास जो नक़ली नोट आते हैं, वे सीधे यूरोप से आते हैं. भारत सरकार, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया और देश की जांच एजेंसियां अब तक नक़ली नोटों पर नकेल इसलिए नहीं कस पाई हैं, क्योंकि जांच एजेंसियां अब तक इस मामले में पाकिस्तान, हांगकांग, नेपाल और मलेशिया से आगे नहीं देख पा रही हैं. जो कुछ यूरोप में हो रहा है, उस पर हिंदुस्तान की सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया चुप है.
अब सवाल उठता है कि जब देश की सबसे अहम एजेंसी ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बताया, तब सरकार ने क्या किया. जब डे ला रू ने नक़ली नोट सप्लाई किए तो संसद को क्यों नहीं बताया गया. डे ला रू के साथ जब क़रार ़खत्म कर चार नई कंपनियों के साथ क़रार हुए तो विपक्ष को क्यों पता नहीं चला. क्या संसद में उन्हीं मामलों पर चर्चा होगी, जिनकी रिपोर्ट मीडिया में आती है. अगर जांच एजेंसियां ही कह रही हैं कि नक़ली नोट का काग़ज़ असली नोट के जैसा है तो फिर सप्लाई करने वाली कंपनी डे ला रू पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई. सरकार को किसके आदेश का इंतजार है. समझने वाली बात यह है कि एक हज़ार नोटों में से दस नोट अगर जाली हैं तो यह स्थिति देश की वित्तीय व्यवस्था को तबाह कर सकती है. हमारे देश में एक हज़ार नोटों में से कितने नोट जाली हैं, यह पता कर पाना भी मुश्किल है, क्योंकि जाली नोट अब हमारे बैंकों और एटीएम मशीनों से निकल रहे हैं
.नकली नोंटों का मायाजाल
सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि 2006 से 2009 के बीच 7.34 लाख सौ रुपये के नोट, 5.76 लाख पांच सौ रुपये के नोट और 1.09 लाख एक हज़ार रुपये के नोट बरामद किए गए. नायक कमेटी के  मुताबिक़, देश में लगभग 1,69,000 करोड़ जाली नोट बाज़ार में हैं. नक़ली नोटों का कारोबार कितना ख़तरनाक रूप ले चुका है, यह जानने के लिए पिछले कुछ सालों में हुईं कुछ महत्वपूर्ण बैठकों के बारे में जानते हैं. इन बैठकों से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देश की एजेंसियां सब कुछ जानते हुए भी बेबस और लाचार हैं. इस धंधे की जड़ में क्या है, यह हमारे ख़ुफिया विभाग को पता है. नक़ली नोटों के  लिए बनी ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भारत नक़ली नोट प्रिंट करने वालों के स्रोत तक नहीं पहुंच सका है. नोट छापने वाले प्रेस विदेशों में लगे हैं. इसलिए इस मुहिम में विदेश मंत्रालय की मदद लेनी होगी, ताकि उन देशों पर दबाव डाला जा सके. 13 अगस्त, 2009 को सीबीआई ने एक बयान दिया कि नक़ली नोट छापने वालों के पास भारतीय नोट बनाने वाला गुप्त सांचा है, नोट बनाने वाली स्पेशल इंक और पेपर की पूरी जानकारी है. इसी वजह से देश में असली दिखने वाले नक़ली नोट भेजे जा रहे हैं. सीबीआई के प्रवक्ता ने कहा कि नक़ली नोटों के मामलों की तहक़ीक़ात के लिए देश की कई एजेंसियों के  सहयोग से एक स्पेशल टीम बनाई गई है. 13 सितंबर, 2009 को नॉर्थ ब्लॉक में स्थित इंटेलिजेंस ब्यूरो के हेड क्वार्टर में एक मीटिंग हुई थी, जिसमें इकोनोमिक इंटेलिजेंस की सारी अहम एजेंसियों ने हिस्सा लिया. इसमें डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, इंटेलिजेंस ब्यूरो, आईबी, वित्त मंत्रालय, सीबीआई और सेंट्रल इकोनोमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रतिनिधि मौजूद थे. इस मीटिंग का निष्कर्ष यह निकला कि जाली नोटों का कारोबार अब अपराध से बढ़कर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन गया है. इससे पहले कैबिनेट सेक्रेटरी ने एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई थी, जिसमें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, आईबी, डीआरआई, ईडी, सीबीआई, सीईआईबी, कस्टम और अर्धसैनिक बलों के प्रतिनिधि मौजूद थे. इस बैठक में यह तय हुआ कि ब्रिटेन के साथ यूरोप के दूसरे देशों से इस मामले में बातचीत होगी, जहां से नोट बनाने वाले पेपर और इंक की सप्लाई होती है. तो अब सवाल उठता है कि इतने दिनों बाद भी सरकार ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, जांच एजेंसियों को किसके आदेश का इंतजार है?
 (साभार चौथी दुनिया)