अभी अभी ......


Saturday, March 6, 2010

महिलाए और समाज


अर्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी महिलाओं को हार्दिक शुभकामनाएं,लगातार कई सालों महिला दिवस हम मनाते आ रहे हैं लेकिन आज एक बार फिर हम महिलाओं के अस्तित्व को पहचानने की कोशिश करते हैं।क्या सिर्फ आज के ही दिन महिला सम्मान की बातें करने से महिला सम्मान की सुरक्षा हो जाती है। या ये सिर्फ एक ख़ाना पूर्ति ही है? जरूरत इस बातकी है कि महिलाएं ख़ुद अपने अस्तित्व को पहचाने।
नारी के विभिन्न स्वरूप
इस देश में नारी को श्रृद्धा,देवी,अबला जैसे संबोधनों से संबोधित करने की पंरपरा अत्यंत प्राचीन है।नारी के साथ इस प्रकार के संबोधन या विशेषण जोडकर या तो उसे देवी मानकर पूजा जाता है या फिर अबला मानकर उसे सिर्फ भोग्या या विलास की वस्तु मानी जाती रही है।लेकिन इस बात को भुला दिया जाता है नारी एक रूप शक्ति का भी रूप है,जिसका स्मरण हम औपचारिकता वश कभी कभीही किया जाता रहाहै।नारी मातृ सत्ता का नाम है  जो हमें जन्म देकर पालती पोसती और इस योग्य बनाती है कि हम जीवन मेंकुछ महत्तवपूर्ण कार्य कर सकें।फिर आज  तो महिलाएं पुरूषों के समान अधिकार सक्षम होकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा औऱ कार्यक्षमता का लोहा मनवा रही है।नई और आधुनिक शिक्षा तथा देश की स्वतंत्रता में नारी को घर की चारदीवारी से बाहर निकलने का अवसर दिया है ,जरूरत इस शिक्षा के व्यापक प्रचार प्रसार की है जिससे ग्रामीण इलाकों की महिलाएं भी लाभाविंत हो सकें साथ महिलाएं अपनों अधिकारों के प्रति ज्यादा से ज्यादा जागरूक हो सकें । प्राचीन काल से चली आ रही परपंराओं पर भी नज़र डाले तो ऐसा कोई भी युग नहीं है जिसके किसी भी कालखंड़ ये नहीं मिलेगा जहां नारी का किसी नव निर्माण में कोई सहयोग नहीं रहा हो,वैदिक युग की बात करें तो आर्यावर्त जैसे महान राष्ट्र के निर्माण की परिकल्पना में निश्चय ही गार्गी,मैत्रयी अरूधंती जैसे महान् नारियों  निश्चित ही योगदान रहा है। पौराणिक काल से चली आ रही ऐसी कई कथाएं हैं जिनमें नारियों की महानता की बातें हैं....महराजा दशरथ के युद्ध के अवसर पर उनके सारथी का काम करने वाली कैकयी द्वारा रथ के पहिये के टूट जाने पर अपने हाथ को धुरी की जगह रखकर दशरथ को युद्ध जीताना क्या राष्ट्र रक्षा,सेवा और निर्माण नहीं है,मध्य काल में भी ऐसे कई उदाहरण हैं जिन्होनें इतिहास में अपनी उपस्थिति को दर्शाया है और हर प्रकार से अपने आप को राष्ट्र और मानवता के लिए अर्पित किया है। रजिया सुल्तान,चाँद बीबी,झांसीकी रानी,लक्ष्मीबाई, अहिल्या बाई,जैसे कई नामों से लेकर सरोजनीय नायडू ,अरूणा आसफ अली विजय लक्ष्मी ,आजाद हिंद फौज में एक पूरी पलटन का नेतृत्व करने वाली लक्ष्मी तथा क्रांतिकारियों का सहयोग देने वाली नारियों की एक लंबी सूची हमारे सामने हैं जिन्होने देश निर्माण के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी,पहली महिला आई पी एस किरण बेदी ,और वर्तमान में पहली महिला राषट्रपति प्रतिभा पाटिल ऐसे तमात उदाहरण हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है किमहिलाओं ने हर दौर मे अपनी सशक्त उपस्थिचि दर्ज कराई है।
समाज का असली चेहरा और महिलाएं
ये तो वो उदाहरण हैं जिनसे इस बात का दावा पक्का हो जाता है कि महिलाओं ने समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है....पर क्या? महज़ ऊंगलियों में गिनी जाने वाली इन महिलाओं के बलबूते पर हम यह कह सकते हैं कि महिलाओं की समाज में उपस्थिति सशक्त हैं ......शायद नहीं यह जबाब  तो आप भी जानतेहैं... आजादी के 60 साल बाद भी महिलाओं की स्थिति कोई ज्यादा सुधार नहीं हुआ है....छत्तरपुर में 4 दबंगो के द्वारा महिला को दिन दहाडे जिंदा जला दिया जाता है(TIME TODAY NEWS 04 FEB 2010) …..तो दूसरी तरफ सतना में मामा ही अपनी भांजी के लिए यमराज बन जाता है(TIME TODAY NEWS 06 FEB 2010)…..ये वो ताजा उदाहरण हैं जिन्होनें हमारी आंखों पर बंधी पट्टी को खोलने में मज़बूर कर दिया है ऐसे और भी ना जाने कितने ऐसे मामले हैं जो जिनके बारे हमें पता ही नहीं है....ये तो समाजिक हालात हैं लेकिन 21 वी सदी में भी अभी तक महिलाओं को ना तो आर्थिक आजादी मिलसकी और ना ही सामाजिक.. कभी एक बात आपने गौर की है कि बारह पंद्रह साल की किसी लडकी को घर से अकेले जाने में कई दफा सोचना पडता है कई बार तो उसके साथ आठ नौं साल के अबोध बच्चों के साथ उन्हें घर से जाने की इज़ाजत दी जाती है यह जानतेहुए भी रास्तें में होने वाली किसी घटना में वह मासूम चाह के भी कुछ नहीं कर पायेगा.....रही बात घर के भीतर की तो आज घरेलु महिलाओं को इस बात की इज़ाजत नहीं वे अपने मन से कुछ बना सके आज भी महिलाएं खाना बनाने से पहले यह पूछती हैं कि आज क्या बनना है क्या खाना चाहतेहैं घर के मुखिया.....महिला आरक्षण विधेयक आज भी लंबे समय से हाशिये पर पड़ा है.नारियों की सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता देखकर तो दुखद रूप से स्वीकार करना पडेगा कि देश का और कथित प्रगतिशील पुरूष समाज अभीतक नारी के प्रति अपना परंपरागत दृष्टिकोण पूर्णतया बदल नहीं पाया है अवसर पाकर उसकी कोमलता से अनुचित लाभ उठानेकी दिशा में सचेष्ट रहता है,आवश्यकता इस बात की है कि अपनी इस मानसिकता से छुटकारा पाकर वह नारी को निर्भय और मुक्त भाव से काम करने का अवसर प्रदान करें।
नारी तुम केवल श्रृद्धा हो,विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्त्रोत सी बहा करों,जीवन केसुंदर समतल में।।
                                                                                

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