अभी अभी ......


Friday, June 11, 2010

गांधी के आदर्श

भरे मंच से एक फिर गांधी के आदर्शों से खिलबाड किया गया है लेकिन इस बार किसी बाहर से नहीं देश की मामूली चीजों को देवता बनाने वाली प्रसिद्दी के लोभ में फसी लेखिका ने .अरूधती राय ने एक फिर बापू के अंहिसा के रास्तों को झूठा साबित करने की कोशिश की है मैं आपसे पूछता हूं जिस व्यक्ति की परिभाषा करने के लिए पूरी एक शताब्दी कम पड जाये उसे भरे बाजार खींचना कहां तक उचित है और इतनी बडी आलोचना के बाद भी प्रशासन मूक है ...मैं आपसे पूछता हूं

क्या उस लंगोट वाले बाबा का त्याग इस बदनाम लेखिका के आगे छोटा पड़ गया है
न जाने किस दिल से देश की महान लेखिका और समाज सेविका अरूंधती राय और महाश्वेता देवी को नक्सलवादियों के प्रति सहानुभूति के शब्द मिल जाते हैं।नाहक नाजायज तर्कों का सहारा लेकर नक्सलवाद को जायज ठहरा रही हैं। उनका बयान ऐसे समय में आया है जब भारत के महान लोकतंत्र व संविधान के प्रति आस्था रखनेवालों और उसमें आस्था न रखनेवालों के बीच साफ-साफ युद्ध छिड़ चुका है।........जी क्या आपको नहीं लगता है कि ऐसे समय में अरूधंती राय जैसे लेखेकों की कलम पर नज़र बंदी की जरूरत है..........मैं आपसे पूछता हूं ...........क्या हमारा मूक दर्शक बनकर बैठे रहना हमारे संविधान और हमारी आत्मा दोनों के साथ विश्वासघात नहीं है

                                                  फर्क पडना चाहिए...मुझे आपको हम सब को मैं नेताओं की बात नहीं कर रहा लेकिन पर इतना मत भूलिए आजादी के बाद जिस व्यक्ति के लिए ऐशो आराम के सारे रास्ते खुलें उन्हे छोड़ उसने सिर्फ दो वक्तका आधा पेट खाना खादी का चरखा और सिर्फ लंगोट को चुना देश में किसी गरीब को पूरा कपड़ा मिले इसलिए इस महात्मा ने सिर्फ आधे तन को ढक कर काम चलाया है ...फर्क पडना चाहिए मेरे दोस्त

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