Friday, June 18, 2010
मैं आपसे पूछता हूं
न जाने किस दिल से देश की महान लेखिका और समाज सेविका अरूंधती राय और महाश्वेता देवी को नक्सलवादियों के प्रति सहानुभूति के शब्द मिल जाते हैं।नाहक नाजायज तर्कों का सहारा लेकर नक्सलवाद को जायज ठहरा रही हैं। उनका बयान ऐसे समय में आया है जब भारत के महान लोकतंत्र व संविधान के प्रति आस्था रखनेवालों और उसमें आस्था न रखनेवालों के बीच साफ-साफ युद्ध छिड़ चुका है।........जी क्या आपको नहीं लगता है कि ऐसे समय में अरूधंती राय जैसे लेखेकों की कलम पर नज़र बंदी की जरूरत है..........मैं आपसे पूछता हूं ...........क्या हमारा मूक दर्शक बनकर बैठे रहना हमारे संविधान और हमारी आत्मा दोनों के साथ विश्वासघात नहीं है....सब चीजें छोड दीजिए एक दिन बैठ कर सिर्फ ये सोचिए क्या हो रहा है इस देश में क्या लोगो के पास अब देश के महात्माओं के चरित्र हनन को रोकने का भी समय नही हैं ....मैं पूछता हूं आपसे... क्या आप खुद भी अपने नैतिक कर्तव्यों से पीछा छुड़ा रहे हैं....फर्क पडना चाहिए...मुझे आपको हम सब को मैं नेताओं की बात नहीं कर रहा लेकिन पर इतना मत भूलिए आजादी के बाद जिस व्यक्ति के लिए ऐशो आराम के सारे रास्ते खुलें उन्हे छोड़ उसने सिर्फ दो वक्तका आधा पेट खाना खादी का चरखा और सिर्फ लंगोट को चुना देश में किसी गरीब को पूरा कपड़ा मिले इसलिए इस महात्मा ने सिर्फ आधे तन को ढक कर काम चलाया है ...फर्क पडना चाहिए मेरे दोस्त ....
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