पिछल दिनों एक ब्लाग पर एक लेख मिला आप लोगो के साथ बांटने का मन हुआ साथ में लिंक संलग्न है,विषय इतना गंभीर है कि आप सुधी पाठकों के विचार जरूर व्यक्त होना चाहिए....
घोटालों, निराशा और आमजन की कीमत पर हो रही राजनीति (इसे सत्ता और शक्ति के लिए गिरोहबाजों की जंग कहें तो ज्यादा बेहतर) के घटाटोप अंधेर में... आधुनिक आजादी के उत्सव की पूर्वसंध्या पर मेरे मन में एक ऐसा सवाल उफन रहा है शायद जिसका जवाब आजाद होने से अब तक या तो मांग नहीं गया है या किसी ने सवाल उठाने की जुर्रत नहीं की है...
देश के चाहे जिस व्यक्ति, दल या तबके को यह शब्द मंजूर हों, लेकिन मेरा मानना है कि मुझे अभी इन शब्दों से आजाद होना बाकी है और उसके बाद गिरोहबाज राजनेताओं से... शायद तब सच्ची आजादी प्राप्त हो जाए...
अधिकारिक टिप्पणी के लिए पधारे...http://kaldevdk.blogspot.com/
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