(पिछले कुछ दिनो से एक अजनबी ने बैचेन कर ऱखा है ..इतना प्यारा है कि कुछ इसके सिवा और कह ही नहीं सकता हूं)
गर प्रकट मिलन में आये लाज सखी मिलना सपनों में आज
चांदनी रात में कंचन तन मुख मंडल में सजाना आज
सखी सपनों में मिलना आज
कमल कोंपल से कोमल पांव तेरे
और पथरीले पथ हैं चारो ओर
तू अमुल्य निधि है सृष्टि की
ताक रहे हैं तुझे चित चोर
सबसे सकुचान पर मुझसे नयन मिलाना आज
गर प्रकट मिलन में आये लाज सखी मिलना
कदम बढाना हौले हौले
निज नस नस मे दमकते शोले
चेहरे पे चंद्रमा का भ्रम चकोर भी बोले
सुनकर तेरे पायल की आवाज
कहां छिडी है सरगम आज
सखी मिलना सपनों में आज
गर प्रकट मिलन में आये लाज
गजरे ना लगाना बालों में
कहीं चुरा ना ले केशों की खुशबू
गर होठों हिलें तो ऐसा लगेगा
छेडी है प्रकृति तो ऐसा लगेगा
छेड़ी है प्रकृति ने साज़
गर प्रकट मिलन में आये लाज सखी मिलना सपनों में आज
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