अभी अभी ......


Tuesday, June 8, 2010

25 साल के आंसूओं की कीमत 25 हजार,









     जिंदगी देने वाले , मरता छोड़ गये,
     अपनापन जताने वाले तन्हा छोड़ गये
     जब पड़ी जरूरत हमें अपने हमसफर की,

    वो जो साथ चलने वाले, रास्ता मोड़ गये

178 लोगों के जुबान से निकला दर्द भी सरकार को नहीं पसीजा पाया

भोपाल गैस त्रासदी के 25 साल बाद जो फैसला आया है उसने ना कितनी उम्मीदों को मौत दे दी है....25 साल तक न्याय की आस में अपनो को खो जाने का दर्द समटे लोगों की आंखों के आंसूओं का मोल लगा महज 25 हजार...ये भारतीय न्याय प्रणाली....ये नरसंहार के लिए मिलने बाले दंड का स्वरूप अचानक ही दुर्घटना में बदल गया ...वाह....25 साल का समय कम नहीं होता एक पूरी पीढ़ी तैयार हो जाती है ना कितने परिवार इस आस में जी रहे थे कि न्याय की देवी की तराजू में उनके आंसूओं का मोल कुछ तो होगा ....महज 25 हजार के जुर्माने औऱ दो साल की कैद ये सज़ा है मौत के सौदागरों की.....साल दर साल जाने कितनी लड़ाईयों के बाद पीडितों का ये सपना टूट गया है.....25 साल से जहरीली गैस से प्रभावित लोगों की नरक यात्रा आज भी उनकी पीढ़ी झेल रही है।ऐसे में इस फैसले ने त्रासदी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे लोगों को जीते जी ही मार डाला है... मामले में मुख्य अभियुक्त वॉरेन एंडरसन आज भी फरार दुनिया के पापा ने उसे भारत को सौपने से इंकार कर दिया है.....एक तरफ इस तथाकथित वैश्विक पापा की एक हुंकार पर बाकी के सारे देशों की पेट गीली होने की नौबत तक आ जाती है ऐसे मैं कभी यह अपराधी सज़ा पा सकेगा इस बात पर भी नचिकेता प्रश्न लगा हुआ है क्या हम कभी इतने शक्तिशाली हो पायेगें कि इस वैश्विक पापा के सामने सीना तान के वारेन नामक इस अपराधी को समर्पण के लिए कह सके ना जाने कब ये समय आयेगा आयेगा या नहीं भी कोई नहीं जानता है 1



यूनियन कार्बाइड़ कार्पोरेशन लिमिटेड़ की स्थापना से लेकर,गैस रिसाव और उसके बाद इस मामले की सुनवाई से लेकर फैसले के दिन तक हर बार लोगों की भावनाओं और उनके विश्वास को छला गया है....और इस फैलसे ने तो अब हमारे वैश्विक पप्पा के लिए एक दरवाजा औऱ खोल दिया है जाहिर सी बात है जब हमारे देश न ही हमारे लोगों को छला तो फिर अमेरिका क्यों चाहेगा इस मामले को आगे बढ़ाने

सरकार है पूरी तरह से जिम्मेदार

25 साल के इस लंबे समय का सबसे कारण सरकार औरयूनियन कार्बाइड कंपनी के बीच 1989 को हुए एक समझौता है इसके तहत कंपनी को दिसंबर 1984 की गैस त्रासदी से जुड़े सभी आपराधिक और नागरिक उत्तरदायित्वों से मुक्त कर दिया गया था।

अदालत ने आठ में से सात दोषियों को दो-दो साल की सजा सुनाई है और प्रत्येक पर 1,01,750 रुपये का जुर्माना लगाया जबकि इस मामले में दोषी करार दी गई कंपनी यूनियन कार्बाइड इंडिया पर 5,01,750 रुपये का जुर्माना लगाया गया। त्रासदी के बाद के शुरूआती वर्षो में सरकार ने कंपनी और उसकी अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन पर आपराधिक मामले दर्ज करने की बजाए उसके साथ करार कर उसे हर तरह के उत्तरदायित्व से मुक्त करदिया। भोपाल गैस ट्रेजडी विक्टिम्स एसोसिएशन' के अनुसार 14-15 फरवरी 1989 को हुए इस करार के तहत यूनियन कार्बाइड के भारत और विदेशी अधिकारियों को 47 करोड़ डॉलर की एवज में हर प्रकार के नागरिक और आपराधिक उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया। इस करार में कहा गया कि कंपनी के खिलाफ सभी आपराधिक मामले खत्म करने के साथ-साथ सरकार इस त्रासदी के कारण भविष्य में होने वाली किसी भी खामी मसलन से उसके अधिकारियों की हर प्रकार के नागरिक और कानूनी उत्तरदायित्व से हिफाजत भी करेगी।जिसे सर्वोच्च न्यायालय अक्टूबर1991 में आंशिक रूप से खारिज कर दिया था।

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2 comments:

शिवम् मिश्रा said...

न्याय के नाम पर भद्दा मजाक किया गया है !

शिवम् मिश्रा said...

आचार्य जी, आप आये बहुत अच्छा लगा पर अगर दो शब्द मेरी पोस्ट के विषय में कह देते तो शायद बात ही कुछ और होती | बुरा ना मानियेगा पर मैं भी आपका ब्लॉग पढता हूँ और यथासंभव अपनी राय भी देता हूँ पोस्ट के विषय में पर ............मैंने कभी आपके ब्लॉग को अपने प्रचार का माध्यम नहीं बनाया है और यही आशा आपसे करता हूँ कि आप भी मेरे ब्लॉग को पढने आये अपना प्रचार करने नहीं |