एसो के सावन मे जम के बरस रे बादर करिया,
यहू साल झन पर जाय हमर खेत ह परिया ॥
महर-महर ममहावत हाबे धनहा खेत के माटी ह,
सुवा ददरिया गावत हाबे, खेतहारिन के साँटी ह ॥
उबुक-चुबूक उछाल मारे गाँव के तरिया,
यहू साल झन पर जाय हमर खेत ह परिया ॥
फोरे के तरिया खेते पलोबो , सोन असन हम धान उगाबो ,
महतारी भुईया ले हमन , धान पाँच के महल बनाबो ।
अड़बड़ बियापे रिहिस , पौर के परिया , बादल करिया ।
यहू साल झन पर जाय हमर खेत ह परिया ॥
4 comments:
बहुत बढ़िया रचना ....
अरे वाह भाई......
एसो के सावन हमर छत्तीसगढ़ म झमा झम बरसे हे, खेत खार सब लबा लब भरे हे, निंदई गुडई होके बियासी के रद्दा देखत हंन.
जय जोहार.
बढि़या काम करत हस गा भाई, हमर भाखा के महक ला चारो मुडा बगरावत हस, आपका बहुत बहुत धन्यबाद.
जय जोहार
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