अभी अभी ......


Monday, September 20, 2010

इन हाथों में साथ रहने की लकीरें ही कम थी...

वो मौसम वो बहार उसके सामने कम थी,
साथ गुज़रा हुआ वक़्त वो फिजा कम थी,
दूर तो आखिर होना ही था जालिम,क्या करें,
इन हाथों में साथ रहने की लकीरें ही कम थी...

3 comments:

mai... ratnakar said...

आचार्य जी क्या खूब लिखते हैं आप भाई मज़ा आ गया



इन हाथों में साथ रहने की लकीरें ही कम थी...


ये कहूँगा कि आपके हाथ में लकीरें भले ही कम थीं, लेकिन उनमें माँ सरस्वती का भरपूर आशीर्वाद है

निर्मला कपिला said...

बहुत खूब। अच्छे लगे शेर। आभार।

Neelmani said...

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