एक अंतहीन सी भूल भलैया में उलझा है
औपचारिकताओं से लदा यह समय
जहां दरअसल
आगे बढना और ज्यादा उलझते जाना है
तार्किकता से दूर
गणित का सिर्फ यही बचता है
हमारे मनसों में
संख्याएं हमें कहीं का नहीं छोड़ती
वे हमें गिनने की मशीनों में तब्दील कर देती हैं
जोड़ बाकी लगाते हुए
हमारे लिए हर चीज सिर्फ साधन हो जाती है
और लगातार इसकी आवृत्ति से
धीरे धीरे हमारे साध्यों में
पता ही नहीं चलता
इस तरह चीजों में ही उलझे हुए हम
खुद एक चीज में तब्दील हो गये हैं
औऱ बाजार के नियमों से
संचालित होने लगे हैं
बच्चे अब रोज ही अक्सर पूछते हैं
यह मानवीयता क्या चीज हैं..
क्या आपको पता है ये
मानवीयता क्या चीज है...
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