अभी अभी ......


Sunday, February 20, 2011

मैं कुछ ख्बाव पुराने छोड आया


ज़रा सी बात पे हर रस्म तोड़ आया था
दिल-ए-तबाह ने भी क्या मिज़ाज पाया था
मुआफ़ कर ना सकी मेरी ज़िन्दगी मुझ को
वो एक लम्हा कि मैं तुझ से तंग आया था
शगुफ़्ता फूल सिमट कर कली बने जैसे
कुछ इस तरह से तूने बदन चुराया था
गुज़र गया है कोई लम्हा-ए-शरर की तरह
अभी तो मैं उसे पहचान भी न पाया था
पता नहीं कि मेरे बाद उन पे क्या गुज़री
मैं चंद ख़्वाब ज़माने में छोड़ आया था

2 comments:

विजय तिवारी " किसलय " said...

आचार्य जी,
भावनात्मक ग़ज़ल कही है आपने.

दिल छूने वाला शेर -

मुआफ़ कर न सकी मेरी ज़िंदगी मुझको.
वो एक लम्हा कि मैं तुझसे तंग आया था..

बधाई.
- विजय तिवारी 'किसलय'

keshav said...

आभार...